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प्रस्तावना. गौरवना जयथी इहां अमो जणावता नथी, कोइने जोवा होय तो अस्मत्कृत श्री स्तुतिनिर्णय विनाकर जो शंका निवत्तेन करवी. इहां तो एटलुंज प्रयोजन ने के श्री यशोविजयजी उपाध्यायजीनी श्रद्धा श्री बुटेरायजीने जचेली (गमेली) हती, तेथीज श्री बुटेरायजीए सर्व संवेगी नाम धारीने कुगुरु समझी तेमनो लिंग त्यागन करी स्वेत कपडा धारण करी* अबी जैन सि
तके कहे मुजब कोई साधु हमारी देखणेमें नही पाया ओर हमारेमेबी तिस मुजब साधपणा नहीहे तिस्से हमनी साधु नहीहे * इत्यादि श्रापूर्वक अंत. काल सुधि श्री अमदावादमां श्री बुटेरायजी रह्या ते सर्व शेठिया प्रमुख त्यांना संघमां प्रसिह ने तो हवे विचार करवो जोइए के आत्मारामजीना गुरुने संयमी गुरु मल्या नही ने तेनुमां संयमीपणुं हतुं नही तो प्रा. स्मारामजीमां संयमीपणुं ने संयमी गुरु मल्या एवु विदामसूझजन तो कोई कहे नहीं, पण कदाच अज्ञताना जोरथी आत्मारामजी आनंदविजयजीए जेम श्री बुटे. रायजीने गुरु धारण करया तेम श्री बुझिविजयजीए नामथी संवेगी श्री मणिविजयजीने गुरु धास्था होय तो पण जैनमतना शास्त्रानुसार आत्मारामजीने साधु मानवा ए वार्ता सिध्थती नथी, केमके यात्मारामजी