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प्रस्तावना.
थापना गुरु आश्रिनखेडे, *के प्रथम परिग्रहधारी महा व्रत रहित यतिथे,अरु पी नीग्रंथपणा अंगीकार करके पंचमहाव्रतरूप संयम ग्रहण करा; परंतु किसी संयमी गुरुके पास चारित्रोप संपत् अर्थात् फेरके दिदा लीनी नही अरु पहले तो इनका गुरु प्रमोदविजयजी यती थे सो तो कुल संयमी नही थे यह वात मारवाडके बहोत श्रावक अजीतरेंसें जानतेहे तो फेर असंयतीके पास दिदा लेके क्रिया नझार करणा यह जैनमतके शास्त्रोसें विरुक्ष है* एम लखेडे तो प्रापे श्री विजयराजेंड्सरिजीनी गुरुगह प्रवृत्ति आगम आझाए शुं शुक्ष जाणी अंगीकार करी? तेनी अमने समजण पाडवी जोइए ॥ __ उत्तर॥ हे महानुनावो! आत्मारामजीनुं लखवू बोलवू तो जाणीजोइने वंध्यापुत्रना लखवा बोलवा जेवू ,का. रण के एमना लखवा प्रमाणे तो एनए वर्तमानकालना सर्वे यति श्रपिज महाव्रत रहित परिग्रहधारी असंयमी मान्या,तेमज वर्तमानकालमा जे पीला कपडा पेहेरी ना. मथी संवेगी तथा साधु नाम धरावे ने ते पण प्रथम कोई निन्नव तथा कोई परिग्रहवंत पंचमहाव्रत रहित असंयमी हता, अने पाबलथी निLथपणुं अंगीकार करी पंचमहा व्रतरूप संयम ग्रहण करी संयमी थया, पण कोई संयमी