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प्रस्तावना. तत्पाठः॥ यदिपुनर्गहोगुरुश्चसर्वथानिजगुणविकलो नवति ततभागमोक्तविधिनात्यजनीयः परंकालापेक्ष्या योऽन्योविशिष्टतरस्तस्योपसंपदाह्यानपुनःस्वतंत्रैःस्थात व्यमितिहदयं ॥
अस्य नाषा ॥ जो गह अने गुरु ए बन्ने सर्वथा निजगुणे कर्राने विकल होय, तो आगमोक्त विधिए करीने त्यागवा योग्य बे, परंतु कालनी अपेक्षाये अन्य कोई विशिष्टतर गुणवान् संयमी होय, तेनी समीपे चारित्र नपसंपद् अर्थात्पुनर्दीदा ग्रहण करवी, परंतु उपसंपद लीधाविना स्वतंत्र अर्थात् गुरुविना रहेवू नही. ए पाठ जणाववानो अमारे. तात्पर्यार्थ एडे के अमारी गड परंपरामां तो शिथिलाचारादि प्रवृत्ति न थइ, पण महोपा. ध्याय श्री कृश्नविजयजीथी त्रीजी चोथी पढिमां गुरु परंपरामां प्राये शिथिलाचारादी प्रवृत्ति जांणी अागमाझा नंगदोष निवर्तन करवा गुरुगड प्रवृत्ति प्रागम आ. झाए शुक्ष जांणी परमपुजाचार्य श्री विजयराजेंइसरि जी पासे उपसंपद ग्रहण करी क्रिया न-हार करयो, तेथी अमो तेमना शिष्य बीए एम प्रत्तिमां कहिएबीए, कारण के जेनी पासे नपसंपद ग्रहण करी क्रियान-झार करे, तेमनाज ते शिष्य प्रवृत्तिमा कहेवाय, ए अागम प्रवृत्ति देखाय जे. ते माटेज श्री वजस्वामीशाखायां चांड्कुले