Book Title: Chaturdash Purv Pujao Author(s): Shilchandrasuri Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 6
________________ 36 अनुसन्धान ३५ परथम जिनमुख लही विपदि गणधर गही । पूरव रचना करी सादरो ।। अ० ॥ सा० ॥४॥ तीरथकरबिबसम दरवश्रुति अनुगम । भाववृधि-हेत भावि भावज्यो ।। अ० ॥ भा० ॥५॥ एह पूरवतनें परम आलंबनें । निरजरा करमनी लावज्यो ||अ० ॥ ला० ॥ ६॥ भव्य हितकारणे भवजलधि तारनें । पूरव अधिकार सुभ वरतवू ॥अ० ॥ व० ॥७॥ नान पद भगतिभर सूत्र समवाय धर ।। निद्धि-चारित लही संतवू || अ० ॥ संस०(त) ॥८॥ इति प्रथम ढाल || अब द्रव्याष्टक मुद्रा रुमाल लेइ पढना ॥ दोहा ।। पूजो भविजन भावसुं, प्रथम पूरव उत्पाद । तनमय एकत ध्यावतां, थायें परम आल्हाद ॥१॥ ढाल ॥ श्रीसंखेसर पास जिनेसर भेटियें ॥ ए चाल । स्यादवाद मत युक्त जिनेसर भाषियो । प्रथम पूर्व उत्पाद गुणाकर राखियो । साधुवृंद सुविचार पढो ए पूर्वने । जिम पामो भवपार दलो करम पूर्वनें ॥१॥ वस्तु दसक सदरूप यथारथ एहमें । जलधि चूलिका भाव धरो मन गेहमें । एहनो अरथ गंभीर करो निज अनुभवें । निरमल निजसतभाव गहो सुख वरधवै ॥२॥ ग्यार कोड पदमान जयो तनमयपणें । द्रव्याष्टक करि पूज वरो जिम नानणे । १. नाणने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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