Book Title: Chaturdash Purv Pujao Author(s): Shilchandrasuri Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 8
________________ अनुसन्धान ३५ मातङ्गार्कघ्नलक्षप्रमितपदमणिज्योतिनानार्थयुक्तं तत्पूर्वाग्रायनीयं स्तुतियुतयजनं द्रव्यनागैर्दधामि ॥१॥ ही० आग्रायणीय पूर्व० ॥ इत्याग्रायणीय पूर्वं ॥२॥१२॥२॥ दोहा ॥ पूजो सुभ भावें करी, श्रीवीरय अनुवाद । भक्ति करता एहथी, थाये परम आल्हाद ॥१॥ ढाल ॥ निरख निरख तुझ बिंबनें [ए चाल || सुण सुण जिन श्रुति भारती, हरषित थायें मुझ चित्त, पूरव रलियामणो ॥ टेक ॥१॥ तीजो पूरव सांभली, सपतति लक्ष पद वित्त ।।पू० ॥२॥ ईभवस्तु-चूलिका सूचक, नामें वीर्यप्रवाद ॥पू० ॥३॥ ज्ञान महोदय प्राप्तये, मधु अमृत आस्वाद पू० ॥४॥ द्रव्याष्टक करि पूजिय, द्रव्य भाव शुचि धार पू० ॥५॥ तेहथी निद्धि उदय थयो चारित्रनंदि सुखकार पू० ॥६॥ काव्यं ।। लोके दुःकर्मभेद्येऽखिलभवविपिनं वर्तयिष्णुं तपस्सु कश्चिदन्योप्यशक्यो विविधमदवशैवंसितुं दुर्नयैस्तं । वीर्यं संगोप्य कुर्मैव निजपदधनैर्ज्ञानसद्ध्यानरक्तमेतद्वीर्यप्रवादं मुनिगणगुणदं द्रव्यनागैर्यजामि ॥१॥ नहीं० वीर्यानुवाद पूर्व० ॥ इति वीर्यानुवादपूर्वार्चनम् ॥ २॥१२॥३।। दोहा ।। भविजन त्रिकरण थिर करी, पूजो धरि आनंद । अस्ति नास्ति पूरव भणी, जिम पामो सुखकंद ॥१॥ ढाल । रामत रमवा हुं गइ थी । ए चाल । सुणो भविजन सुभ भावसुं, जिन भारति सुखकार हे माय । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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