Book Title: Chaturdash Purv Pujao
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan
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________________ अनुसन्धान 35 बारमा अंगनी तीजी परूवना चूलिका पंचम गावो / तिन कारण चित अधिक उल्हासें दृष्टिवाद पिण ध्यावो रे ।भ० // 1 // भवसिद्धी सुभ दरशन आश्रय दस चउद पूरव गावो / भाव षयोपशम श्रुति अभ्यासें संपद सहज निपावो रे ।भ०।।२।। अनुकरमें जिन भगति नानें गणधर निज पद पावै / नवनिधिसंयम कुशलें धारी अविचल कमला रमावै रै ।भ०॥३।। काव्यं / प्रवरपूर्वगतश्रुतिसंपदं विमलभावहदाम्बुज धारयन् // निजकलत्रमुपेत्य सुखेन ते शिवगतं प्रणमामि शिवाय तं // 1 // ही श्री दृष्टिवादश्रुतिभ्योर्थं यजामहे स्वाहा: ॥इत्यर्थम् // इति महोपाध्याय चरित्रनंद कृता // इति पूर्वगत पूजा समाप्ता / / अथ आरती // जय जय जिनराया // ए चाल / / पूरव श्रुतिसारा ||ज० ||1|| उतपाद 1, अननीय, 2, वीरयवादें 3 अस्ति नास्ति // 4 // स्यादवादा // ए चउ पूरव अतिशय चूलिका / / संयुत परिवादा ॥ज०।२।। नान 5, सत्य 6, आतम 7, करमवादें 8, पचखान 9, गुनधारा || विद्या 10, अवंझ 11, प्राणावाय 12, बारमो। किरिया 13, बिंदुसारा 14, ज० // 3 // ए चउद पूरव नित प्रति ध्यावत, परमानंद भाया / तनमय तत्त्व रमणता आदर, परसुख विरमाया ॥ज० // 4 // जे भवि पूरवगत श्रुति आरति करस्यै चित लाया / . ते निधि चारित्र कमला वरस्यै वंछित फल पाया ॥ज० // 5!! इति पूरवगत आरती // श्री श्री श्री साहा फूलचंद मूलचंद पठनार्थं // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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