Book Title: Chaturdash Purv Pujao Author(s): Shilchandrasuri Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 1
________________ महोपाध्याय चारित्रनन्दी विरचित चतुर्दश पूर्व पूजा ॥ खरतरगच्छीय वाचक चारित्रनन्दीनी रचेली एक पूजा अहीं प्रस्तुत छे. जिनेश्वरनी मूर्ति अने जैन आगमशास्त्र - आ बे जैन संघमां सर्वोच्च पूजनीय तत्त्वो मनायां छे. ते बन्नेनी विविध प्रकारे पूजा करवानुं जैन शास्त्रोम विधान छे. ते विधानने मध्यकालना अनेक जैन कविओए संगीतमय गेय रचना, जेने 'पूजा' तरीके ओळखवामां आवे छे ते, रूपे ढाळ्युं छे, गायुं छे, वर्णव्युं छे. ए परम्पराने अनुसरीने रचायेली आ १४ पूर्व पूजा छे. नवा ज विषय लईने रचायेली आ पूजा, विद्वद्धोग्य होवा छतां अपूर्व छे अने रुचितर्पक छे. Jain Education International सं. विजयशीलचन्द्रसूरि जैन संघनां शास्त्रो 'आगम'ना नामे ओळखाय छे. तीर्थंकरना गणधरोए रचेल ते आगमोने 'द्वादशाङ्गी प्रवचन ना नामे ओळखवामां आवे छे. द्वादशाङ्गी एटले १२ अंग. तेमां बारमा 'दृष्टिवाद' नामक अंगना मुख्य ५ प्रकार छे: १. परिकर्म, २. सूत्र, ३. पूर्व, ४. चूलिका, ५. अनुयोग परिकर्मना सात भेद छे. सूत्रना २२ भेद छे, जे विभिन्न दृष्टि-मतने अनुसरीने ८८ भेदोमां पथराय छे. पूर्व १४ छे, तेमां वस्तु, पाहुड, पाहुडिया, इत्यादि पेटाविभागो होय छे. चूलिका पण एक विशिष्ट उपविभाग छे, जे १४ पैकी प्रथम ४ पूर्वमां ज होय छे. अनुयोगना बे प्रकार छे : प्रथमानुयोग तथा गण्डिकानुयोग. आ तमाम विषय पारिभाषिक शब्दावलीमां ज निरूपवानो होई रचना जरा क्लिष्ट वा गहन बने तो तेमां कशुं अजुगतुं के अरुचिकर नथी समजवानुं. ए परिभाषा तेना जाणकार पासेधी समजवानी कोशीश करवी ए ज तेनो उकेल होय. कविए कठिन परिभाषाने, पोताना चित्तमां व्यापेली तत्त्वप्रीति तथा ज्ञानोपासनाना आलम्बने, काव्यदेहे ढाळी छे, तथा जूना गेय ढाळोमां गाई छे, तेमां तेमनुं कविकर्म सार्थक बनी रहे छे. कुल २१ ढाळोमां पथरायेल आ पूजामा प्रथम पांच ढाळो कुसुमांजलिरूप विधाननी छे. तेमां कर्ताए दृष्टिवादना मूळ पांच प्रकारोनुं वर्णन आपेल छे. ते पछी १४ ढाळोमां १४ पूर्वनुं वर्णन छे. शास्त्रमां जेवुं For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 ... 18