Book Title: Chaturdash Purv Pujao Author(s): Shilchandrasuri Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 4
________________ अनुसन्धान ३५ काव्यं ॥ स्वपक्षकाजीविकरबराशिजिनेन्द्रसिद्धान्तगजेभसूत्रैः । समन्वितं कर्मनिवारणायाहं श्रीदृष्टिवादे प्रणमामि सूत्रं ॥१॥ ही श्रीमदृष्टिवादे सूत्रेभ्यः कु० ॥२॥ ढाल ॥ दृष्टिवादेंजी तीजो श्रुतिसुखधाम ए । पूरवगतजी चउद भेद अभिराम ए । उतपादोजी १, अग्रनीय २, वीरज ३, नाम ए । अस्ति नास्तीजी ४, नान ५, सत्य ६, गुणठाम ए । त्रूटक ॥ गुणठाम आतम ७, करम ८, पचखान ९, विविध विद्यावाद ए १०, इग्यारमो अवंध्य पूरव ११ प्राणावाय प्रवाद ए १२ । विविध संयम भाव सूचक किरियाविशाल वखान ए १३, बिंदुसार ए पूरवगत १४, श्रुति कुसुमांजलि परधान ए ॥१॥ काव्यं ॥ बह्वर्थसद्भावविचारयुक्तमुत्पादकाधब्धिदशप्रभिन्नं । श्रीदृष्टिवादे श्रुतिरत्वपुझं नमाम्यहं पूर्वगतं शिवाय ॥१॥ म ही श्रीदृष्टिवादे पूर्वगतश्रुतिभ्य: कु० ३।। ढाल ॥ अंग बारमें जी अनुयोग जुगविध भाव ए । सूत्र सार्थेजी अनुरूप योग ज नाव ए । तिहां मूलेंजी प्रथमानुयोग वखानियै । तिम बीजोजी गंडिकानुयोग पहिचानियै ॥ Jटक ॥ पहिचान प्रथमानुयोग सूत्रे प्रथम दरसन योगथी । भव कलप जिनवर सर कल्याणक सूचना अनुयोगथी । गंडिकानुयोगें कुलगरादिक प्रवर नृपकलप भाव ए । तिन कारने अनुयोग सूत्रे कुसुमांजलि मेलो धाव ए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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