Book Title: Chaturdash Purv Pujao Author(s): Shilchandrasuri Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 9
________________ फेब्रुआरी- 2006 पद षष्टिलक्ष जिन भाषियो, पूरव चोथो गुणधार हे माय ॥ सु० ॥१॥ सप्त भंगिइं सोहतो, अस्तिनास्ति परवाद हे माई । दस वस्तु दस चूलिका सूचक कीनो अगाध हे माय || सु० ॥२॥ त्रिक शुद्धी एहनें सदा, विनयें पूज रचाइ हे माय । तेहथी निधि उदयें करी चारित्रनंदि सुख थाइ हे माय ॥ काव्यं ॥ स्याद्वादत्वं पदार्थे मनसि मुनिवरा: भावयन्त्यत्र पूर्वे, अस्तित्वं नास्तिकं स्यादहितमुभयकं द्वाववक्तव्ययोगौ । गुप्त्यैकं भूधराणि त्रिभुवनपदगं विस्तृतैः सूचितं च तत्तं पूर्वं यजेयं परमसुखनिवासाय सद्रव्यपुत्रैः ||१|| अ ह्रीं० अस्तिनास्तिवाद पूर्वं० ॥ इत्यस्तिनास्तिप्रवादपूर्वार्चनम् ॥२॥१२॥४ दोहा ॥ पंचम पूरव पूजिये पंचम गति दातार । ज्ञान प्रवादें नाणनें भाख्यो अरथ विचार ॥१॥ ढाल ॥ श्रीसंखेशर पास || ए चाल ॥ पूरव नानप्रवाद धरो निज उरकंजें । युगषेट वस्तु विचार तेहिज रिधिसंपजै ॥ बहिरातम तज योग लहै अंतरातमा । सिद्धी सत्ता वास हुवै परमातमा ॥१२॥ काल अनादि अनंत दलै करम वरगना । साधें सादि अनंत केवल बोध दरशना | नाण तणो अधिकार पूरव मांहें कह्यो । एक उनको पदमान अरथ बहु संगो ||२|| 39 Jain Education International For Private & Personal Use Only सु० ||३|| www.jainelibrary.orgPage Navigation
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