Book Title: Chaturdash Purv Pujao
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 16
________________ अनुसन्धान ३५ दोहा ॥ चउदम पूरव नित नमो दुविधपूतता धार । सेवो प्राणी भावसुं जूं पामो भवपार ॥ ढाल ॥ तुझ दरशन के कामी रे ॥ए चाल ॥ जिन प्रवचन बलिहारी रे परमानंद पाया |जि० टेका। लोकालोक स्वरूप प्रकाशक भविकज-बोध कराया । नभ तल तरणि किरण रुचि भू-कज ए दृष्टांत धराया रे |प० ॥१॥ बिंदुसार वा लोकप्रवाः नख पण वसतू माया । रुचकाष्टक निरमलता कारण दुरधर दुरित गमाया रे पि०॥२॥ कोटि द्वादश पद लक्ष पंचाशत पद अरथागम धाया । सेवित निध्युदय चारित्रनंदी लहै रिधि वृधि सुखदाया रे ।।०।।३।। मुही० बिंदुसार पूर्वे० ॥ इति लोकप्रवाद वा बिंदुसार पूर्वार्चनम् ॥२॥१२॥१४॥२६।। दोहा ॥ पूरवगत पूजा करी पण अधिकार समेत । दृष्टिवाद अंग पूजियै निज अनुभव गुण लेत ॥१॥ काव्यं ॥ सध्यानाधारभूतं दुरितरजसमीरं समृद्धिप्रदोयमेतत्पूर्वानुभावैः सुरमणिसदृशो भव्यसत्त्वाः प्रयान्ति । ननाकानुत्तरादेरचलसुखनिधि प्रेत्य गच्छन्ति सिद्धि । सन्तत्यैश्वर्यपद्मप्रवचननिधिभिः संयमः सौख्यमेनि ॥१॥ विमल कोटक चन्द्रकुलाम्बरे खरतराधिपराजमुनीश्वरः । गुरुपदाम्बुजभृङ्गसुवाचकः समभवद्विजयोत्तररामकः ॥२॥ प्रवरवाचकवंशपरम्परा: पदमहर्ष सुखार्भककंचन । महिमचित्रकनिद्धिसुवाचकाः समभवन् जिनशासनपारगाः ॥३॥ गुरुपदाम्बुजहंससुसंयमः परमसिद्धिसुखाय विनिर्ममे । शेरखगाष्टमहीनमिजन्मनि विपुलपूर्वगताधिकृतस्तुति ॥४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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