Book Title: Chaturdash Purv Pujao
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 17
________________ फेबुआरी - 2006 ढाल ॥ भविजन सुभभाव ॥ ए चाल || भवि धारिय उल्हास पूरवगत श्रुति भजियै रै ।भ० ॥टेक०॥ बारम अंगें पण अधिकार परिकर्म १, सूत्र २, पूरवगत ३, सार भ०॥ अनुयोग ४, चूलिका ५, पंचम जान । इहां पूरवगत श्रुति परिमाण भ० ॥१॥ गणधर परथम रचना जान तेहथी पूरव पूज वखांन ।भ०॥ द्वादश अंग पिण पाछै जोय अलपमति मुनिजननें होय भ० ॥२॥ ए संपूरन बारमो अंग नियमा समकिति पभणै रंग ।भ० ।। लेसें पूरव मान विचार जिन आगमथी कीनो उधार ।भ० ॥३॥ कोटक शशिकुल खरतर ईस सिंह पटोधर राजमुनीश ।भ०|| तसु पद सरवर हंससमान पाठक रामविजय गुनखान ।भ०॥४॥ वाचक वंश परंपर जान पदमहरष सुखनंदनमान ।भ०॥ कनक महिम चित्रकुमर विनेय निधि पदकज भुंग संयमगेय ।भ०||५|| शर खग धृति ॥१८९५।।नमि जनम दिन जान, रचना कीनी श्रुति गुन षांन ।भ०॥ ए श्रुति पूजन जे कर रंग ते नित विलसें नवनिधि रंग ।भ०॥६॥ काव्यं ॥ जिनवरागम पूर्वगतस्तुति भविकसत्त्वभवोदधितारका | विपुलसन्ततिसंपददायका सुनिधिसंयमवित्तमुपेतु मे ॥१॥ ही श्रीमदृष्टिवादांगाय द्रव्याष्टौ यजा० ॥१५॥ दोहा ॥ श्रावक जन भावें करी देवो अरथ विशाल । जिम निज कमला आदरी पामो शिवशुखमाल ॥१॥ ढाल ॥ तूठो तूठो रे मुझ साहिब ए चाला। भावो भावो रे भवि चउद पूरव श्रुति भावो ॥टेका। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 15 16 17 18