Book Title: Chaturdash Purv Pujao
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 14
________________ 44 अनुसन्धान ३५ दोहा ॥ जिनश्रुति पूरव नित यजो ग्यारम सुरसुखदाय । अनुक्रम परमातम लहै निज शुद्धाकृति भाय ॥१॥ ढाल ॥ मजा उडाय ले बुढिया ।। ए चाल ॥ श्रुति पूरव भज ले मनुवा जिनधी निजचित धाररे ॥टेका। पूरव भज ले ग्यारमो मुनिवर नाम ध्येय कल्याण रे ॥१।श्रु०॥ साधुवरग कल्याणकारक ए गुणगणगरिमनिधान रे ॥२॥श्रु०॥ द्वादस वस्तु सूचक रत्नाकर ते निज सत्ता गहाइ रे ।श्रु० ॥३॥ पद जिनयुगमित कोटी रमणे सुध चिदध्यान रहाइ रे ।श्रु०॥४॥ सकल सुरभि सुचि द्रव्ये यजतां लाभै रिधिविसतार रे ।श्रु० ॥५॥ निद्धिउदयकर चारित्रनंदी पायो सुखभंडार रे ।श्रु०॥ काव्यं ॥ खल्वर्हद्भिक्षुवर्गान्विण(न)य गुणयुतान् ज्ञानसम्यक्त्वहेतुं । मुक्तिस्त्रीसौख्यरूपं निजगुणरमणं साधनन्तद्रुबीजं । पूर्वावन्ध्यं शिवं वा प्रमितगुणनिधिं स्वेप्सितार्थं सुरई । द्रव्याष्टाभिर्यजेयं भवजलधितरि शाश्वतानन्दकाय ॥१॥ मुही० कल्याणनामध्येयं० ।।। इति कल्याणनामध्येयाच॑नम् ॥२॥१२॥११॥२३॥ दोहा ॥ पूरव प्राणावायने धारो हृदय मझार । बारमो सुरसुख एहथी पामै मुनि ततकाल ॥ ढाल ॥ मन मोहन मेरी अंगिया रंग डारी || ए चाल ॥ मोकुं तो रंग डारी मनमोहन जिनधी मो० ॥टेका। पंच बिरति रति वागा पहरी संजम भूषन धारी ।म० ॥१॥ नवबिध ब्रम्ह अनोपम कंकुम नान गुलालभृत सारी ||म०॥२॥ मुनि उत्तर गुणरंग पिचकारी पूर्वार्थ अबीर उडारी ॥म० ॥३॥ प्राणावाय पूरव भाजन विच त्रिदश वस्तु पाक लगारी ॥म० ॥४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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