Book Title: Chaturdash Purv Pujao
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 10
________________ 40 अनुसन्धान ३५ शुचि निरमल ईभद्रव्य धरो पात्र कंचनें । द्रव्य भाव शुचि होय करो पूरव अरचनें । एहथी भवि शुभ भाव धरै मति तत्तमें । निध्युदय चारित्रनंदि लहै या जगतमें ॥३॥ काव्यं ॥ ज्ञानैर्जेयादिरूपं प्रवरमतिबलैयिते सत्पदार्थ हेयोपादेयभावं श्रुतिगुरुविनयैर्बोध्यते स्वात्मरूपं । यत्र ज्ञानाधिकारे तमदलदलनं द्वादशाङ्गं प्रधानं तस्माज्ज्ञानप्रवादं नृनिपुणरचितैर्द्रव्यनागैर्यजामि ॥१॥ में ही० ॥ श्रीनानप्पवायपुर्वं० ।। इति ज्ञानप्रवादपूर्वार्चनम् ॥ २॥१२॥५॥१७|| दोहा ॥ पूरव सत्य प्रवादनें पूजू हुं तिरिकाल । भाव यथारथ जाणवा एह सूर रुचिमाल ॥१॥ ढाल ॥ आदै अरिहंत विराजै ॥ ए चाल ॥ छट्ठो पूरव समरीजै उपयोगें वचन चरीजै । श्रीसत्यवाद भज लीजै वस्तु सोलस भाव वरीजै ॥ भविक जन सेवज्यो प्रवचननें ॥ टेक ॥१॥ रस अधिपद कोटि अनूपी ते मे सत्यवाद प्ररूपी । दरव भाव यथारथ चूंपी निज रमतां थायें शिव भूपी ॥ भ० ॥२॥ वर्स द्रव्ये पूज रचावो त्रिन योगनी थिरता रमावो । अमृतरस भावना भावो निधिउदय चारित्र मन लावो ॥ भ० ॥३॥ काव्यं ॥ द्रव्यक्षेत्रादिभावैर्नियमितवचनैः सत्यवतिष्णुभावं । कश्चिद्योगानुयोगैरखिलमुनिवरान्मौनमेव प्रधानं ।। . सत्यासत्यादिभेदैललितनगनयैविस्तृतं यत्र सद्वाक् तस्मात्सत्यप्रवादं गुणगणजलधि द्रव्यवगैर्यजामि ॥१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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