Book Title: Charitra Chakravarti
Author(s): Sumeruchand Diwakar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 2
________________ परम पूज्य प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवर्ती १०८ श्री शान्तिसागरजी महाराज का 'जीवन महान रहा है। वे २० वीं शताब्दी में चारित्रमार्ग के पथप्रर्दशक रहे हैं। उन्हीं की कपा से आज इतनी 'संख्या में दिगम्बर साधु चारित्र पथ के अनुयायी बनकर। यत्र-तत्र-सर्वत्र मंगल विहार करते दिखाई दे रहे हैं।। शिष्य-प्रतिशिष्य तथा प्रप्रप्रतिशिष्य की परम्परा आज चल रही है। उन महामना आचार्यदेव के सम्बन्ध में चारित्र चक्रवर्ती इस नाम से विद्वद्वर श्री सुमेरुचंद्र। 'दिवाकर ने एक ग्रन्थ तैयार किया था, उसकी वर्तमान २१ वीं शताब्दी में फिर भी महनीय आवश्यकता एवं उपयोगिता को देखकर धर्म संरक्षिणी महासभा ने पुनः एक और संस्करण के प्रकाशन का निर्णय लिया जो समयोचित ही है। इस पुनीत कार्य के लिए हमारे मंगल अ-4वमानस: जाद। 81200 -एकबार आचार्य श्री से किसी ने पूछा था कि। जीवन काध्येय क्या होना चाहिये? आचार्यश्री का उत्तर था कि जीवन का कालमध्येय चारित्र की साधना होनी चाहिये।।। प्रश्नकर्ता ने पुनः प्रश्न किया कि महाराज, यदि किसी से चारित्रकी साधना संभवन हो तब ? | आचार्यश्री का उत्तर था कि ऐसे व्यक्ति को 'चारित्र व चारित्रधारियों की उपासना/आराधना करनी चाहिये। किंतु हाँ ! नैतिक आचरण की तो प्रत्येक व्यक्ति को निरतिचार साधना करनी ही करनी चाहिये, उसकी मात्र आराधना से कार्य नहीं बनेगा। जीवन में हमने भी अनेक बार चारित्र साधना की कांक्षा की, कई बार कल्पना भी की, किंतु तदनुकुल संबल धारण न कर पाये । अंत में चारित्र वा चारित्रधारियों की आराधना/उपासना को ही जीवन का लक्ष्य बना लिया। आदरणीय निर्मलकुमार सेठी जी ने हमारे। द्वारा इस संस्करण के प्रकाशन में दिये गये सहयोग हेतु धन्यवाद ज्ञापित किया। संकोचवश हम कुछ कह न 'पाये। कहने की इच्छा थी कि हमने कोई सहयोग नहीं। 'किया, पूर्व पुण्य ने हमें जो कुछ भी दिया है, उसे इस 'प्रकाशन के माध्यम से, बस, चारित्र की। उपासना/आराधना में लगा दिया। -कांतिलाल जवेरी, मुबंई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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