Book Title: Chandanbala
Author(s): Mishrilal Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 7
________________ मैं विद्याधरों का राजा हूं। जब तक सैनिक आयेंगे मैं तुमको लेकर मीलों दूर चला जाऊंगा दुष्ट ! छोड़ दे । तुझे मालूम नहीं मैं राजा चेटक की पुत्री हूं । प्राण दण्ड मिलेगा How रूप की रानी तुम यहीं रुकना। भयानक जंगल है। मैं राजधानी में तुम्हारे लिए महल की व्यवस्था करके अभी लौटता हूं विद्याधर सोचता है भयानक जंगल है। दूर तक कहीं 'गांव नहीं है। कहां भागेगी? अभी लौटता हूँ । अच्छा हुआ, पापी चला गया। हे भगवान ये कभी लौटे। वह दुष्ट आये इसके पहिले मैं बहुत दूर चली जाना चाहती हूँ ।

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