Book Title: Caurasi Bol
Author(s): Padmanabh S Jaini
Publisher: Siddhantacharya Pt Fulchandra Shastri Foundation Roorkee

Previous | Next

Page 26
________________ परगट करै विदग्ध लखि __ मुगध न जानै सोइ ।।११।। कहत यथारथ सौ लखै जाके, होइ सुदिष्टि। कहा लखै रवि कै उदय जो नर अंध निकिष्टि ।।१२।। कहै सुनै कछु होत नहि जाके घट परकास । सोइ नर निज अक्षसौं लखें सुलक्ष विलास । ।१३ ।। जौं कठोर पाषान परि वरसै मूसलधार। तौ भी मेघ न करि सकै कोमलता गुनसार ।।१४।। तावत ज्यौं प्रगट करै अगनि सुदर्ब कुर्ब । त्यौं ही बुध सत असत का भेद करतु है सर्व ।।१५।। भूसि उठतु स्वान ज्यौं दुर्जन सुनि सुनि बात। तौं भी सत्यारथ कहै सुधी सदा अवदात ।।१६ । । कहा करै सविता पिता . सबही कौं सुख देइ। आधासीसी युक्त नर __सो दुख सहज लहेइ ।।१७।। यथारथ कल्पित कहै ___जे नर अंध कुबुद्धि । बंधन करि भव वन भमहि लहहि न कबहु न सुद्धि ।।१८ ।। वीतराग दूषनरहित 17 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50