Book Title: Caurasi Bol
Author(s): Padmanabh S Jaini
Publisher: Siddhantacharya Pt Fulchandra Shastri Foundation Roorkee

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Page 42
________________ तिनकौ कहै मांसके भक्षी। मनुज मानुषोत्तर के आगै जाहै कहै न दूषन लागै ।।८६ ।। रोडककहै नाही नाही काम चउवीस अरु नवै नवोत्तरे लघु समुद्र मांन नाही। ऐरापति नर तजि खेत एक सों साठि माही। ............... ||८७।। चौरासी लख जोनि है ए चौरासी बोल। जै मानै ते मानि है भवसागर कल्लोल ||८८|| दोहानगर आगरा मैं वसे कौरपाल सग्यान। तिस निमित्त कवि हैम नै कियें कवित्त परवांन ।।८६।। दोष भाव धरि नहिं कीयो कियो न निज मत पोष। सत्यारथ उपदेस यह कर्यो सुजन संतोष ।।६० ।। सत्यारथ वानी प्रगट घट घट करौ उदोत ।। संयम (संसय) तिमिर पट(ल) फटै । बढ्यौ ग्यान सुख होत ।।६१|| इति चतुरासीतिर्वादः सर्व पाखंड... इति चौरासी बोल समाप्तः ।। 33 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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