Book Title: Caurasi Bol Author(s): Padmanabh S Jaini Publisher: Siddhantacharya Pt Fulchandra Shastri Foundation RoorkeePage 41
________________ दोहागंगा देवी स्यौ कहै पचपन्न वर्ष हज्जार। चक्रवर्ति भरतेस नै कियो लोग व्यवहार ।।२।। अडिल्लभोगभूमि छानवै न गनहि उछेदि के __ चर्म नीर मै दोष न लागै वेदि कै। घृत करि साधित वासी भोजनु लेतु है सारे फल कौ भुंजत दोष न देतु है।।८३।। सवया इकतीसारिषभ विरागता निमित्त नीलंजना नृत्य मानै नही देव देवी की (?) कीनी विधान की। माता पिता जीवतें विरागता कौं नाहि धरै वीर वर्द्धमान जैसी गर्भवास आन की।। बाहूबल को कहै कि युगल सरूप धारी हाड पूजै कौडे(?) थापि कहै परिवान की(?) । नाभि मरूदेवी के जुगल धरम मानतु है। तिन हीतै जिन उतपत्ति सरधान की।।८४।। चौपइहोहि जुगलीया सब मलधारी कहै सलाका पुरुष निहारी। चौसठि इन्द्र न अधिके जानै बारह देवलोक ही मानै ।।८५।। जे जादौ (- यादव जिन मारग पक्षी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50