Book Title: Caurasi Bol
Author(s): Padmanabh S Jaini
Publisher: Siddhantacharya Pt Fulchandra Shastri Foundation Roorkee
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कहिहि मलेछ चतुर्थ काल सारे हुये (?)
भरि (?)। देवलोकतै चारि कोस कौ कहि अवधारै
प्राण जात व्रतभंग करत नहि पाप
विचारै।। उपवास मांहि ओषध लभत व्रती न धारै दोष मल
चौसठि हजार नारी राखै चक्रवर्ति धरि तन नवल (?) |७४।।
समोसरण जिन नगन नांहि दीसै परवानैं (?)
अविक्र तन(?) नभवस्त्र राग कारन
सरधानहि। लाठी राख जती कहे अरू कर्ण वधावहि (?)
जग (गज) उपरि ही मुगति गइ मरूदेवि
बतावहि ।। नारी अगम्य दुरधर कठिन पंच महाव्रत पग धरहि।
नहि लहहि दोष बलहीन मुनि वारवार भोजन करहि ।।७५ ।।
गीता छन्ददरवित्तकि क्रिया विन भाव लिंग गृहस्थ केवल पद धरे।
चंडालादिक जाति तहि मुनि मुकति
तनव (?) बसि करै।। आभर्ण सहित जिनेस प्रतिमा रागकारण मानते।
अनमिल बखानहि और मानहि कलपना
सरधानतें ।।७६ ।। साभरण बसन मुगति चाहै मानि परग्रह हठ गहै।
रवि चंद मंडल मूल आया वीर वंदन कौ
कहै ।। सासुती गति मरजाद मेटहिं सूर ससि की जानते।
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