Book Title: Caurasi Bol
Author(s): Padmanabh S Jaini
Publisher: Siddhantacharya Pt Fulchandra Shastri Foundation Roorkee

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Page 37
________________ दोहरासमयादिक परजाय कौ काल हरषं (?) समुझाहि । काल अणू जाणै नही ते असंख्य जगमाहि ।।६८।। छप्पय काल अणू जो नाहि समय तौ होइ कहो ते सुथिर । वस्तुविन नांहि नास उतपत्ति तहातै असन (?) जनम।। जै होइहो उषर (?) - श्रम जगत में वृद्धि होउ परधान (?)। और क्षणभंगुरमत मै नहि सधै वस्तु सीमा चित्र (?)।। प्रल(य) जनम नास थिरभाव बिना थिरता निमित्त । समयादिकी काल अणू जगि कहहि जिन ।।६६ ।। सवया इकतीसामानै जो मुनिसुव्रत को गनधर घौरो भयौ काहू काज के निमित्त मांस मनि गहे है। घरि घरि विहरि अन्न मांगि मागि कहै मुनि थान आनि भोजन को लहै है।। निजमत निंदक को ठौर मारै पाप नहीं निर्दय सुभाव धरि काहूकी न सहै है। साची वात झूठी कहै वस्तु को न भेद लहै हठ रीति गहै रहै मिथ्या वात कहे है। ७० ॥ भरतनै ब्राहमी बहनि कहै नारी कीनी महासती दोष लाइ भववास चहै है। ____ 28 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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