Book Title: Caurasi Bol
Author(s): Padmanabh S Jaini
Publisher: Siddhantacharya Pt Fulchandra Shastri Foundation Roorkee
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पढत सुनत जिनिके मिटै संसै मत
पहिचानि ।।४।। संसय मत मैं और है अगनित कलपित बात।
कौन कथा तिन्ह की कहै कहिए जगतविख्यात ।।५।।
चौपाईजगत रीति सौजे न मिलाही
कहे अछेरे जिनमतमाही। जामै कथा कही बहुतेरी
संसय उपजावन भव बेरी ।।६।। तातै सेतंबर मत चाले
संसय मती जानि निरबले भद्रबाहु स्वामी के बारे
बारह बरस काल हुवसारै ।।७।। तहां भयो इनको अंकुरौ
क्रम क्रम बढत बढ़त हुव पूरौ । कहवति कौं यह जैन कहावै
भोजन सविस नाम ज्यों पावै ।।८।। जो नर नांहि वस्तु का खोजी
सो न सुमत अमृतरस भोजी। अंतरदृष्टि होइ घट जाकै
भेदबुद्धि परकासै ताकै ।।६।।
दोहरा - आकदुग्ध अर गोदुग्ध
इनमैं बड़ी विवेक। एक घटावै दिष्टि को
तेज बढ़ावै एक ।।१०।। कहा भयौ जो पीत है
पीतल कनक न होइ।
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