Book Title: Caurasi Bol
Author(s): Padmanabh S Jaini
Publisher: Siddhantacharya Pt Fulchandra Shastri Foundation Roorkee
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चौपई जौ मुनि तपवी रिद्धि के धारी
गहत अहार ते न नीहारी। क्यौं करि सकल जगत के स्वामी
__ करें निहार अमलपदगामी ।।२७ ।।
दोहराजाकै देखि मिटै विकट घोर उपद्रव वर्ग।
दोष होइ ताकौं कहै रोग उपसर्ग ।।२८।।
और
सवैया इकतीसाकहै, कोउ क्रोध साला (?) हुवौ है गोसाला मुनि
तिनि तेजोज्वालमाला छोड़ी परजलती। वीर के समोसरणि दाहे जिन दोइ मुनि
ताकी झाल स्वामीहू को पहुची
उछलती।। तहां भयो उपसर्ग नाही उषमा तै फिरि
उदरकी व्याधि लइ आमलो प्रज्वलती। परगट दोष जांनि तजै जैसौ सरधान
ज्ञानवान जिनिकै सुजोति जगी बलती।।२६।।
दोहराजनमत ही मति श्रुति अवधि
तीन ग्यान घट जास। कहै पढयौ वटसाल सौं
वर्धमान गुनवास ।।३०।। कहै और सितवास सब (?)
जब जिन होइ विराग। एक वरस लौं दान दे
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