Book Title: Caurasi Bol Author(s): Padmanabh S Jaini Publisher: Siddhantacharya Pt Fulchandra Shastri Foundation RoorkeePage 27
________________ - भूषन भूकुल जास। जिस जग भूषन देव के कहहि अहार गरास ।।१६ ।। सवया इकतीसा केवली आहार करै मानत ही लागतु है दूषन अठारै महाप्रमाद मोहियै। मोहकर्म नासकारि बीरजु अनंत धारी ताहि भूख लगै ऐसे कहन न सोहियै ।। भुंजत अनंत सुख भोजन सौं कौन काज आदित के वंदे कहौं कहा दीप बोहियै । काहू परकार ईस कौं न कबल आहार __ जे कहे है तिन्हकै जग्यो है पाप कहिये ।।२०।। मोहनी करम नासै वेदनी कौ बल नासै विस के विनासे ज्यों भुजंगम की हीनता। इंदिनी के ग्यान सौ न सुख दुख वेदै जहां वेदनी को स्वाद वेदै इंद्रीयी अधीनता।। आतमीक अंतर अनंत सुख वेदै जहां बाहिर निरंतर है साता की अछीनना। तहां भूख आदि असाता कहा बल करै। विस कणिका न करै सागर मलीनता ।।२१।। देव मानसी कही अहार से तृपति होइ नारकीक जीवनि कौं कर्म कौं अहार है। नर तिर्यंच कै प्रगट कवला आहार एक इंद्री . धारक के लेप को आधार अंडे की विरधि होइ ओजाहार सेवन तै पंखी उर ऊषमा तै ताकी बढ़वार है। 18 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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