Book Title: Budhjan Satsai Author(s): Budhjan Kavivar Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur View full book textPage 9
________________ देवानुराग शतक बुधजन सतसई पार उतारे भविक बहु, देय धर्म उपदेश । लोकालोक निहारिके, कीनो शिव परवेस' ।।७०।। जो जांचे सोई लहे, दाता अतुल अछेव'। इंद नरिंद फनिंद मिलि, करे तिहारी सेव ।।७१।। मोह महा जोधा प्रबल, औंधा राखत मोय । याकों हरि सूधा करो, शीश नमाऊं तोय ।।७२।। मोह-जोर को हरत हैं, तुम दरसन तुम बैन । जैसे सर शोषण करे, उदय होय के ऐन ।।७३।। भ्रमत भवार्णव' में मिले, आप अपूरव मीत । संशय नाश्या दुख गया, सहजे भया नचीत ।।७४।। तुम माता तुम ही पिता, तुम सजन सुखदान । तुम समान या लोक में, और नाहिं भगवान ।।७५।। जोग अजोग लखो मती', मो व्याकुलके वैन । करुना करिके कीजियो, जैसे तैसे चैन ।।७६ ।। मेरी अरजी तनक सी, बहुत गिनोगे नाथ । अपनो विरद विचारिके, डूबत गहियो हाथ ।।७७।। मेरे औगुन जिन गिनो, मैं औगुन को धाम। पतित उधारक आप हो, करो पतित को काम ।।७८।। सुनी नहीं औ—१२ कहूं, विपति रही है घेर । औरनिके कारज सरे, ढील कहा मो बेर ।।७९।। १. मुक्ति में, २. प्रवेश, ३. अपार, ४. उल्टा , ५. सूर्य के उदय होने पर गर्मी से तालाब सूख जाता है। ६. संसार समुद्र में, ७. निश्चिन्त-बेफिक्र, ९. मुझ दुःखी के. १०. पकड़िये, ११. मत, १२.फिर सार्थवाहि विन ज्योंपथिक, किमि पहुंचे परदेश। त्यों तुमतें करि हैं भविक, शिवपुरमें परवेश ।।८०।। केवल निर्मलज्ञान में, प्रतिबिंबित जग आन । जनम मरन संकट हस्यो भये आप रतध्यान ।।८१।। आप मतलबी ताहितें, कैसे मतलब होय । तुम विन मतलब हो प्रभू, कर हो मतलब मोय ।।८२।। कुमति अनादि संगि लगी, मोह्यो भोग रचाय । याको कोलों दुख सहूं, दीजे सुमति जगाय ।।८३।। भववनमाहीं भरमियो, मोह नींद में सोय । कर्म ठिगोरे ठिगत हैं, क्यों न जगावो मोय ।।८४।। दुख दावानल में जलत, घने कालको जीव । निरखत ही समता मिली, भली सुखांकी सीव ।।८५।। मोह ममत दुखदा तिनें, मानत हूँ हितवान । मो मनमाहीं उलटि या, सुलटावो भगवान ।।८६।। लाभ सर्व साम्राज्य का वेदयता तुम भक्त । हित अनहित समझे नहीं, तातें भये असक्त ।।८७।। विनयवान सर्वस लहे, दहे गहे जो गर्व । आप आपमें हो तदपि, व्याप रहे हो सर्व ।।८८।। मैं मोही तुम मोह विन, मैं दोषी तुम शुद्ध । धन्य आप मो घट बसे, निरख्यो नाहिं विरुद्ध ।।८९।। ८. मत, १. साथी, ४. सीमा-हद ७. उल्टी बुद्धि, २. कब तक, ५. दुःख देनेवाली, ८.सर्वस्व ३. ठग, ६. उसको,Page Navigation
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