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बुद्धि-विलास
[ १०१ फुनि द्वारा पेषण करै, जो मुनि पावै कोय।। ताकौं लै पडगाहि दै, सुद्ध प्रहार जु सोय ॥८५६॥ पैऐ कवहु न दीजिये, मुनि कौं भोजन दांन । विन जल दधि घ्रत और जो, वास्यौ भोजन जांन ॥८५७॥ वांदे वांदी पाहुने', मंत्र जंत्र अरु देव । इनकै निमित कियो जु ह्व, सो मुनि दै न तजेव ॥८५८॥ वीध्यौ झूठो' वरण-च्युत, रोग वधांवन वार । सूको जीरण२ चलित रस, रिति विरूद्ध दुषकार ॥८५६॥ आयो ह परगांव सौं, चमड़े दुरजन कोय । परस्यौ विल्ली तुरक कौ, निंदनीक जो होय ॥८६०॥ फुनि परस्यौ ह रजसुला, तिय घर की का प्रांन । ए सव दूषण टालिके, 4 मुनि भोजन दान ॥८६१॥
रजस्वला' वर्नन रजसुलानि तिय कौ वरन, कछु यक कहौं सुभाय । ग्रंथनि कौ मत पाय कैं, सो सुनिएँ चित लाय ॥८६२॥ होत रितवती जो त्रिया', जाके हैं द्वै भेद । ऐक प्रक्रत इक विक्रत है, विधि सुनि वहुरि निषेद ॥८६३॥ हूं जोवन मद रोग से, विक्रत सु होय अकाल । सो सुध ऐक सनांन लें, त्रय दिन गनैं न लाल ॥८६४॥ होत मास के मास जो, ताहि प्रकृत' तू जांनि ।
निसि आधी वीतै जु ह्व, तवत त्रय दिन मांनि ॥८६५॥ छंद पद्धरी : इन तीनौं दिन के माझि जोय,
एकांत विष तौ रहै सोय ।
८५८ : १ पहने। २A निमति । ८५६ : १ झूठ्यौ। २ जीरन । ८६२ : १ A रजसुला। ८६३ : १ तिया। ८६४ : १ गिनें। ८६५ : १ A विक्रत ।
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