Book Title: Buddhivilas
Author(s): Padmadhar Pathak
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 195
________________ १६४ ] बुद्धि-विलास अग्नि वृत्ति यह क्रिया कही गुरदेव जू, ___सर्व तरेपन क्रिया कही है ऐव जू ॥१४१३॥ दोहा: पूरव भव मैं जीव जिह, समकित पूर्वक धर्म। साध्यौ सोचय के लहत श्रावग के घरि जन्म ॥१४१४॥ वह श्रावग ह धर्मयुत' सो ऐ क्रिया सधात । गर्भान्वय कौं आदि दे, वालक कौं विष्यात ॥१४१५॥ फुनि दीक्ष्यान्वय कहत हौं, पाठ और चालीस। तिन क्रियानि की विधि कहौं, जे भाषी जगदीस ॥१४१६॥ छद पद्धरि : पहलै समस्त हिंसादि त्याग, सो कहहि महाव्रत जे सभाग' । फुनि करै त्याग हिंसा सथूल २, सो कहै अणुवृत यह समूल ॥१४१७॥ दीक्ष्यान्वय के ऐ भेद दोय, तिन साधन कौं सनमुष जु होय । ताकौं मुनि दे उपदेस येह, अवतार क्रिया है प्रथम तेह ॥१४१८॥ चौपई : जो मिथ्यात-जुक्त भवि जीव, ह सो कारण पाप सदीव । सव मिथ्यात त्याग करि जोय, अणुवृत तथा महाव्रत सोय ॥१४१६॥ धारचौ चाहै तव मुनि कनें, तथा गृहस्थाचारिज भनें । तिन ढिगि जाय धर्म निरदोष, पूछ वहुरि करै यह पोष ॥१४२०॥ मैं मिथ्यात धर्म सव तज्यौ, सुद्ध धर्म चाहत हौं भज्यौ । तवै मुक्ति मारिग जो संच, सो वतावहीं तजि परपंच ॥१४२१॥ भगवत मुष तें दिवि-ध्वनि भई, द्वादसांग वाणी गुरगमई। वेद पुरांण क्रिया चारित्र, देव मंत्र फुनि चिन्ह पवित्र ॥१४२२॥ सुधि प्रहार इन दातन मांहि, सावधान रहु संसय नांहि । है विटंवनां धूरत जेह, मांनै मति तू नां संदेह ॥१४२३॥ १४१४ : १ लहैं। १४१५ : १ जुत। १४१७ : १, २ contains the additional verses. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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