Book Title: Buddhivilas
Author(s): Padmadhar Pathak
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 197
________________ १६६ ] अरिल : दोहा : सोरठा : दोहा : छद : Jain Education International बुद्धि, विलास धारै प्रतिमां जोग, सो किरिया उपयोग, जांनि लेहु यह परवी के उपवास निसि । साषि देव गुरु-सास्त्र तणी तैं वस्त्र ले, धारि जनेऊ श्रावग के घट कर्म जे । गोत्र जाति दें आदि और धारे गुनी, श्राई ॥१४३७ ॥ यह उपनीति क्रिया श्री गुरमुष तं भनी ॥१४३८ ॥ पूर्वोक्त करि, जैनि-ग्रंथ व्रतचर्या अभ्यास । करं सुवृतचर्या क्रिया, जांनि लेहु भवि तास ॥१४३६॥ १४४४ : १ तोहि । पढिकै सास्त्र समस्त, गुर श्राग्यातें पहरई । भूषरगादि सुभ वस्त्र, किरिया व्रतावतार यह ॥ १४४० ॥ पहली परणी वांम कौ, बहुरि विवाह करेय । संसकार के रूपसो, क्रिया विवाह सास्त्र निकस्य वाहि कुजौंनि तैं जिन समकित ग्रहरण कियौ श्रवें सव भूषणादि पहरे बहुरि, निज तिय बहुरि विवाह क्रिया करी तातें वर्ण लाभ मो जोग्य धरो सुरिंग श्रावक करें प्रसंसा तासकी, विधि-विधि सौं महा जोग्य तू है सु श्रव जाती भोजनादि संबंध मैं, तुहि' कर्राह न देत दिलासा अधिक सो किरिया यह वर्ण-लाभ है तेरहौ फुनि सुरगहु पूजा जिन पाछें कर श्रावगनि वड़े बड़े इकठे करें यह श्ररज तुम समान मो करहु मैं श्रावग व्रत दांन दिये गुरुसेव किय मिथ्यात निवारे ॥ १४४२ ॥ पाऐं । लषांऐं ॥ संस्कारा । कहेय ॥१४४१ ॥ For Private & Personal Use Only श्राग्या वुलावै । करावे ॥ धारे । अवसारा ॥१४४३॥ सवही । तवही ॥ व्यौहारा । न्यारा ॥। १४४४ ॥ जागौं । वषांरणों ॥ www.jainelibrary.org

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