Book Title: Buddhivilas
Author(s): Padmadhar Pathak
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 201
________________ १७० ] बुद्धि-विलास क्षयोपसम के चौदह लीन, च्यारि सु ग्यांन सुदरसन तीन । लवधि पांच इक संजन कहौं, समकित इक जांनौं चौदहौं ॥१४८२॥ अउदयेक के तेरा भाय, जांनि वेदत्रय च्यारि कषाय । असिधि अग्यांन सुलेस्या तीन, गति है मनुषि सुनहु परवीन ॥१४८३॥ अप्रमत्व सातमौं कहैं, इकतीसौं वैही गुन गहैं। अष्टम कहैं अपूरव कर्ण, उप-समक्षयक श्रेरिण जुत वर्ण ॥१४८४॥ तामैं भाव कहै गुरण तीस, उपसम के तौ दोय कहीस । क्ष्यायक के द्वै जांनि विचित्र, इक समकित दूजो चारित्र ॥१४८५॥ क्षयोपसमके भेद जु बारा, लवधि पांच त्रय दरसन सारा। च्यारि सु ग्यांन और हू गनिऐं, अउदयेक के ग्यारा भनियें ॥१४८६॥ वेद तीन अरु च्यारि कषाय, गति है मनुषि प्रसिद्धि वताय । लेस्या सुकल सु ऐक स्वग्यांन, दोय पारणामिक के जान ॥१४८७॥ नवम थांन अनवित्ति करणवै, अष्टम माफिक भाव परणवै । दसमौं गुणसथांन यह भाष्यौ, सूक्षम अंतराय' अभिलाष्यौ ॥१४८८॥ तामैं भाव कहे तेईस, उपसम के तौ दोय लहीस । क्ष्यायक के द्वै और वतात, समकित चारित ऐ गुरगात ॥१४८६॥ क्षयोपसमके भाव सु बारा, अष्टम माफिक जाणौं सारा । अउदयेक भाव ऐ पांच, असिधि अग्यांन मनुषि' गति वांच ॥१४६०॥ लेस्या सुकल लोभ तुछ कहे, भावपारणांमिक द्वै वहै । है उपसांत मोह ग्यारहौं, भाव इकोस तास मधि कहौं ॥१४६१॥ दसमां तै' द्वै घाटि विचित्र, त्वछ लोभ क्षायायकर चारित्र । षीणमोह द्वादस मौहत है, क्ष्यायक द्वै चारित समकित है ॥१४६२॥ क्षयोपसमके वारा भावे, दसम समांन जांनि गुर गावें । अउदयेक चव' असिधि अग्यांन, लेस्या सुकल मनुष गति जान ॥१४९३॥ भाव-पारणामिक के दोय, भाव वीस यामै सव होय । सजोग केवलि है तेरमौं, चौदह भाव तास भविनमौं ॥१४६४॥ १४८८ : १ सांपराय । १४६० : १ मनुष । १४६२ : १ ताम। २० व्यायक। १४६३ : १ चउ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org www.jainel

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