Book Title: Buddhivilas
Author(s): Padmadhar Pathak
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 193
________________ सोरठा : वरवै : दोहा : अरिल: बुद्धि-विलास पिता समीपि कुमार, पद जुवराज लहै करै । राज-काज सुष सार, सो जुवराज क्रिया कहैं ॥१३९८॥ कलसाभिषेष होय, राजनि करि प्रथ्वी विषै। प्राग्या मानत लोय, सो स्वराज किरिया भनें ॥१३६६॥ चक्र-लाभ की विधि करि, हजव जुक्त । चक्र-लाभ सो किरिया, कहैं समस्त ॥१४०० चक्र रतन' प्रागै चलै, साधत है षट-चंड । यहै दिसांजय है क्रिया, जीतै सत्रु प्रचंड ॥१४०१॥ सिद्धि दिगविजय' करि सु चक्र प्रागै धरै, निज नगरी मैं करि प्रवेस पूजन करै । नवनिधि चौदह रत्ननि की वहु भांति सौं, इछ्छापूर्वक दांन देत सुभ कांति सौं ॥१४०२॥ वहु वाजित वजाय भूप अभिषेष कौं, भूषण प्रभु के धारत मुकट विसेष कौं। सकल देव विद्याधर नृप माने तिन्हैं, नगर लोग चरणांभिषेष करि प्रभु गिनें ॥१४०३॥ होय निवोगी ते सव ही सेवा करें, चक्रभिषेष क्रिया प्रैसँ गुर ऊचरें। वैठि सभा मधि प्रजा धर्म अरु न्याय मैं, चलवा सो सांमराज्य' किरियांन मैं ॥१४०४॥ राज करत ग्यानोदय से भास जवें, ह विरक्त दिक्ष्या कौं उदिम करि तवें । लोकांतिक वे देव निवोगी प्रायक, कर स्तुति' फुनि वड़े पुत्र कौं ल्याय के ॥१४०५॥ परंपराय निमत्ति भूप सव साषिक, सीष वेत पालियो प्रजा सुभ भाषिकैं। १४०१ : १ रत्न। १४०२:१दिग्विजय। १४०४ : १ संम्मराज्य । १४०५ : १ सतुति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org www.jaineli

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