Book Title: Buddhivilas
Author(s): Padmadhar Pathak
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
View full book text
________________
बुद्धि-विलास
[ १५३ सोरठा : किये पाप के काम, षोसि' लियो गुर-पद नृपति ।
'यथा नाम गुण स्यांम, जीवत ही पाई कुगति' ॥१३००॥ चौपई : फुनि मत वरष ड्यौढ मैं थप्यो, मिलि सवही फिरि अरहंत जप्यौ ।
लिये देहुरा फेरि चिनाय, दै अकोड़ प्रतिमां पधराय ॥१३०१॥ नाचन कूदन फिरि वहु लगे, 'धर्म माझि फिरि अधिके पगे। पूजत' फुनि हाथी सुषपाल, प्रभु चढाय 'रथ नचत विसाल ॥१३०२॥ तव ब्राह्मणनु मतो यह कियौ, सिव उठांन को टौंना दियौ । 'तामै सवै श्रावगी कैद, करिके डंड किये नृप फैद' ॥१३०३॥ यक' तेरह पंथिनु मैं ध्रमी, 'हो तौ महा जोग्य' साहिमी। कहे षलनि के नृप रिसि ताहि, हति के धरयौ असुचि थल बाहि ॥१३०४॥ फुनि हूं ज्यौं त्यौं चाल्यौ धर्म, मूढ न समझे' कलि को मर्म। फुनि वहु नांचन कूदन लगे, श्रावग महा मूढ गुन पगे ॥१३०५॥ वाही विधि रथ जात्रा धरै, पूजा वहुरि प्रतिष्टा करें। ऐ न डरे औरंनि न सुहात, गहें दड़ी कौ पोत रहात ॥१३०६॥ फुनि भई छव्वीसा कै साल, मिले सकल द्विज लघु र विसाल । सवनि मतौ यह पक्को कियौ, सिव उठांन फुनि दूसन दियो ॥१३०७॥ द्विजन' प्रादि वहु मेल२ हजार, विनां हुकम पायें दरवार । दौरि देहुरा जिन लिय लूटि, 'मूरति विघन करी वहु फूटि3' ॥१३०८॥ काहू की मांनी नही कांनि, कही हुकम हमकौं है जांनि ।
असी म्लेछन हूं नही करी, वहुरि दुहाई नृप की फिरी ॥१३०६॥ दोहा : लूटि फूटि सव ह चुके, फिरी दुहाई वोस।
कहनावति भई लुटि गएँ, भाग्यौ वारह कोस ॥१३१०॥
१३०० : १ डि। २ गयौ। ३ गुरु। ४ सबै ।
'वही तिवाडी स्यांम जीवत ही नरकनि गए।' १३०२ : १ 'सरम न पकरी अधिके पगे।' २ पूजारथ। ३ missing | ५ 'वहु न ।' १३०३ : १ 'तामैं सर्व श्रावगी कैद, डंड कियौ नृप करि के फैद ।' १३०४ : १ गुर। २ को। ३ भ्रमी। ४ 'टोडरमल नांम।'
ताहि भूप मारचौ पल मांहि, गाड्यो मद्धि गंदगी ताहि । १३०५ : १ समुझे। १३०८ । १ द्विजनु । २ मिले। ३ 'प्रतिमां सब डारी तिन फ़टि ।'
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214