Book Title: Buddhivilas
Author(s): Padmadhar Pathak
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 187
________________ १५६ ] बुद्धि-विलास इक सूत्र नै ग्यारह तलक की करि जनेऊ तिनु दई । प्रतिमां जिती धारी जिते गुरण की जिन्हें सुवरण मई ॥१३३१॥ यह चिन्ह करि वृह्मत्व को फुनि अंग सप्तम प्रांनिकै । भाषी करौ ईर्या' सु पूजा देव जिनकी मांनि कैं॥ वारता है प्राजीवका दति दांन च्यारि प्रकार है। स्वाध्याय पढन पढांन संजम दया जीव अपार है ॥१३३२॥ तप करि पढौ वहु सासतर उपदेस यह सव ब्रह्म कौं। चक्री दयौ सधवाइऐ श्रावगनि तें जिन धर्म कौं ॥ वहुरचौं क्रिया है ऐक सौ अर आठ ते करवाइए। ज्यौं धर्म फैले जगत मैं विधि इन्हें सर्व वताइऐ ॥१३३३॥ दोहा : वहुरि भरत सव श्रावकनि', इम भाषी निज वांनि । ये जु वृह्म तिनकौं सकल, पूजौ फुनि द्यौ दांन ॥१३३४॥ ऐ भाषै जिन धर्म की, क्रिया और प्राचरन' । सो सव साधौ जुक्ति सौं, नमि प्रभु असरन सरन ॥१३३५॥ इनु' उपदेसी पहल ये, क्रिया ऐक सौ पाठ। तिनको कछु संछेप सौ, सुनि लीजे भवि पाठ ॥१३३६॥ तिन मांही त्रेपन क्रिया, गर्भान्वय तू जांनि । अठताली दीक्ष्यान्वये, सप्तक नृन्वय मांनि ॥१३३७॥ लक्षिरण कहे तिन जुक्त ह, तिनत ए करवाय। भाषी प्रादि-पुरांरण मैं, सो कछु देहु वताय ॥१३३८।। चौपई : प्रथम प्रभान्व त्रेपन क्रिया, मधि प्राधान नाम सुनि भिया। रिति सनांन चौथै दिनि करै, कामिनि सो या विधि अनुसरै ॥१३३६॥ प्रथम पूजि जिन-मंदिर जाय, वेदो के ढिगि कुंड कराय। ऐक गोल इक रचै त्रिकौंन, इक चौकुंट रचै सुभ सौंन ॥१३४०॥ १३३२ : १ ईज्या। १३३४ : १ श्रावगनि । १३३५ : १ पाचर्न । २ सर्न । १३३६ : १ इन। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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