Book Title: Buddhivilas
Author(s): Padmadhar Pathak
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 189
________________ १५८ ] बुद्धि-विलास जन्मतिथि की सातवें महीने, तथा पाठवै जांनि प्रवीनैं । वालक कौं तक अंन्न षुवावत, अन्नप्रासन यह क्रिया कहावत ॥१३५३॥ वरष एक को है जव वाल, जिन पूजादिक करै विसाल ।। जाचिग जन कौं देवहु दान, व्युष्टि क्रिया सु ग्यारहीं जान ॥१३५४॥ देव गुरू सास्त्र मुष प्रागैं, जिन गंधोदिक तें अनुरागें। वाल भिजोय दूरि करवावै, गंधोदिक सरीर के लावै ॥१३५५॥ फुनि प्राभूषणादि वहु धारे, केस वाय यह क्रिया विचारै । पंचम वर्ष उपाध्या जैनी, की करि पूज भेट सुष दैनी ॥१३५६॥ पठण काजि वालक हि मिल्हावै, वो ऊंकार लिषि ताहि दिषावै । फुनि अक्षिर तापै लिषवाई, ताहि क्रिया लिपि कहिऐ भाई ॥१३५७॥ वर्ष पाठवें पै विधि कर, व्रह्मचर्यवर्त कौं धरै। राज-पुत्र विनि ब्राह्मण वैस्य, भिष्या कौं अंतहपुर पैस्य ॥१३५८॥ ल्यावत ता मधि प्रभु के जाय, कछु चहोडि आप फुनि षाय । क्रिया चौदही यह उपनीति, ता पीछे अव सुनहु न मीत ॥१३५६॥ कटि के त्रिवली मौंजी वांधे, ऊरु धोति लांग विन साधै। . सीस अंगोछा वांधे न्यारौ, हृिदै जनेऊ रुचि सौं धारौ ॥१३६०॥ ऐ ठौहर सव चिन्हत करई, वहुरचौ पंच अणुवृत धरई। दांतिण कर न ले तावूलैं', उवटणसौं न्हावै नही भूलै ॥१३६१॥ षाट न सोवै अंन्य सरीर, ताहि सपरसै नहि गुण धीर । ब्रह्मचर्य पालै गुरण वढे, जौ लौं यह विद्या कौं पढे ॥१३६२॥ ब्रह्मचर्य यह क्रिया कहात, जांनि पंद्रही याकौं भात' । वरष सोलहै ऊपरि जवें, दिवस जात करिये यौं तवें ॥१३६३॥ देवादिक की पूजा करिकै, गुरु को पाग्या उर मैं धरि के। करी प्रतग्या सो सव त्यागें, वस्त्रादिक धार अनुरागें ॥१३६४॥ पिता पक्ष' कुल कहिए सोई, सिंह कुल धर्म माझि रत होई। वृतावतर्ण क्रिया यह गहिऐ, भई सोलहीं सुनि अव कहिऐ ॥१३६५॥ २ A ववटण। ३ भूल । १३६१ : १ तांबूल। १३६३ : १ भ्रात। १३६५ : १ पक्षि। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jaineit www.jainelibrary.org

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