Book Title: Buddhivilas
Author(s): Padmadhar Pathak
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 182
________________ बुद्धि-विलास [ १५१ दोहा: द्वादसांग वाणी रहौ, जयवंती जग सिद्धि । वषतरांम को दीजिए, भव भव मांझि सुवुद्धि ॥१२८४॥ अथ श्रावग क्रिया वर्नन' अरिल: क्रिया एक सौ आठ जु गरभाधान तै, मुक्ति पहूंचै तब लौं कही प्रमान तैं। विधि पूजा जिन मंत्र सु करि सरधान मैं, ___कोज्यौ विधिपूर्वक लषि आदि पुरान मैं ॥१२८८॥ दोहा: श्रावग कुल मैं गर्भ तें, उत्सव आदि कितेक । ग्रंथ बधै तातै क्रिया, बरनी नहीं प्रतेक ॥१२८६॥ पंथ बड़े मधि ग्रंथ अति, लहौं' कौंन विधि पार । कछु यक यह संछेप सौ, वरन्यौं वरनन सार ॥१२८५॥ अथ चौदह विद्या वा चौदह रतन कविता में प्रसस्त धरै तिनके नाम वर्नन दोहा : वरनत कवि विद्या रतन, कविता मैं अभिराम । चौदह चौदह आदि द्विज, तिनके सुनिएँ नाम ॥१२८६॥ सर तिर अक्षिर' वैद्य सुर, तंत्री नट कवि गांन । तंत्र रसायन अश्व धन, तनसुध विद्या जान ॥१२८७॥ लक्ष्मी रंभा वैद्य' विष, सुरा सुधा द्रुम वाज । संष धनुष चौदह रतन, गो मनि गज इंदराज ॥१२८८॥ अथ कलिकाल दोष करि उपद्रव वर्नन चौपई : 'संवत अठारह से गये', ऊपरि जके अठारहर भये । तव इक भयो तिवाडी स्यांम, डिभी अति पाषंड को धांम ॥१२८६॥ १२८५ : १ लहै। २ कछु। ३ संक्षेप । १२८७ : १ अक्षर। २.वैद। ३ रसायनि । ४ जांनि । १२८८ : १० वैद। १२८६ : १ 'संबत जबै अठारह भए'। २ अठारहस। ३ महादुष्ट । tin B only as 1288 and 1289. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org www.jaineli

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