Book Title: Bruhat Puja Aur Laghu Puja Author(s): Tribhuvandas Amarchand Salot Publisher: Jograjji Chandmallji Vaid View full book textPage 6
________________ गोत्र अठारे स्थापकर, विचरे महीयल सूर। इनमें सें शाखा चली, अनगिनती भरपूर ॥७॥ दूःख दोहग दूरि किया, पूरि भविजन आस। ऐसे सत्गुरु प्रणमतां, पावै लीलविलास. ॥ ८॥ तिनके पाट कलानिधि, यक्षसूरि भये स्वाम । प्रतिबोधे श्रावकबहुत, पाम्या सुख अभिराम ॥९॥ सिद्धसूरि सिद्धसम भये, तीजै पाट विशाल । शास्त्र रचे बहु अर्थरस, वाणी अमिय रसाल ॥१०॥ ककसूरि तिन पाटपे, कारज सारे अनेक । कुमति कुपन्थ हटायके, कीना जैन विवेक ॥११॥ देवगुप्ति भये देवसम, देव्यां पूजे पाय । पूजे भविजन भावसें, पातिक दूर पलाय ॥१२॥ ये गुरु नामें ओलखे, ये गुरु सेवै पाय । ये गुरु पूजै भावसें, दुःख-अरि दूर पलाय ॥१३॥ गंधोदक जल शुद्धसें, जो पूजे गुरुराय । मोह मदादिक दूरहो, पावै लच्छी अथाह ॥१४॥ अथ प्रथमजलपूजाप्रारम्भः ढाल-पहली. श्रीसिद्धचक्र आराधो, मनवंछित कारज साधोरे भवियों ए देशी ॥ ___ तथा काफी-आशावरी रागेण गीयते ॥ सद्गुरु चरन पखालों। मनसुध पूजनने चालोरेPage Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28