Book Title: Bruhat Puja Aur Laghu Puja
Author(s): Tribhuvandas Amarchand Salot
Publisher: Jograjji Chandmallji Vaid

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Page 13
________________ आनंदोरे ॥ भविका० स० ॥ राजगृहि सबसंघ मि. लकर । विनति पत्र पठावे । बहुतसे श्रीसंध सामा आवे। गुरु पद शिश झुकावेरे॥भविका० स० ॥१॥ करजोरे पुन विनति करत है । संघ उपद्रव टालो यक्ष मानभद्र नित्य सतावे । ताको विघन निवारोरे ॥ भविका स० ॥२॥ये सुन विनति सद्गुरु बोले। हम आवे तत्काल । लब्धि संपन्न लब्धिसे पहुंचे। पूर्णभद्र चैत्यालरे ॥ भविका स० ॥३॥ “नमिऊण" मंत्र गुरु तब भाखे । छांटे जलधर धारा, यक्ष प्रसन्न हों सबसें बोले । ये गुरु मोटो उपगाररे ॥ भविका स० ॥४॥ जीवन छोडे इन चरननसें । में हुं चाकर दास। समाकत लीनो कुमति हटाके। सेवे गुरु पद खासरे ॥ भविका स० ॥ ५ ॥ जो इन गुरुकी सेवा करेहै। ताके उपद्रव चुरूं। नित नित वित्त सुयश बढावु । मन इच्छा सब पुरंरे ॥ भविका० स० ॥ ६ ॥ बहुत नपद्रव शांति कीना। पुर पट्टण विच धामे। ऐसे सद्गुरु अष्टम पाटे। यक्षदेव भये स्वामिरे ॥ भविका० स०॥ ७॥ पाट अठारमें इण गुरुनामें पूर्ण भये गुणवान। पाटनमांहे दीक्षा दिधि । वज्रसेन शिष्य सुच्याररे । भविका० स० ॥ ८॥ नागेन्द्रचन्द्र निवृति विद्याधर शाखा चतुर गुरु थापे। उपज्या पंचमदेव विमानें । नामसें भाजे तापरे ॥ भवि

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