Book Title: Bruhat Puja Aur Laghu Puja Author(s): Tribhuvandas Amarchand Salot Publisher: Jograjji Chandmallji Vaid View full book textPage 5
________________ ३ देवगुप्तसूरिगुरो ! अत्र अवतर अवतर स्वाहा ॥ १ ॥ ँ ह्रीं श्रीं श्रीजिनरत्प्रभसूरिगुरो ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः ठः स्वाहा इति प्रतिष्ठापनम् ॥ २ ॥ ँ v ॐ ह्रीं श्रीं श्रीजिनरत्नप्रभसूरिगुरो ! अत्र मम संनिहिंतो भव वषट् ! इति समिहितकरणम् ॥ ३ ॥ अथ स्तवनाप्रारम्भः अब कलश लेके स्नात्रीया खडा होवे - दुहा - अर्हन सिद्ध सूरीश्वरा, पाठकमुनिगुणवंत । ए सेवे किल विष टर्ले, भाजे कुमति कुपन्थ ॥१॥ श्रीजिनप । सजिनन्द, शोभित छठे पाट । रत्नसूरि पद सेवतां होय सुचंगा ठाट ॥२॥ दस- चतुर-पुरव श्रुतिधरा, रत्नसूरि भये स्वाम । भूमणि दिनकर तुल्यसम, अमर रटे गुणग्राम ॥३॥ पद्मा अम्बा-सिद्धादिका, बहुदेवीं सुर साथ। पूजे स्वयंप्रभसूरि पद, करजोरे घर माथ ॥४॥ श्रीश्रीमाल स्वयंप्रभु-कीने अरु पोरवाड । चरम जिनेसर आंतरे- पहोंच्या स्वर्ग मजार ||५ ॥ त्रयलख श्रावक एकसम-चोराशी हजार । रत्नप्रभसूरिकिये, मिथ्याताप विडार ॥ ६ ॥Page Navigation
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