Book Title: Bruhat Puja Aur Laghu Puja
Author(s): Tribhuvandas Amarchand Salot
Publisher: Jograjji Chandmallji Vaid

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Page 9
________________ सद्गुरु० ॥ ४॥ ये विनति सुन श्रावककी। सद्गुरु वयण उचरिये सुधडजन । सद्गुरु०॥५॥ वीर नामसें देहरो बनावो । नाथ ठवि सुखभरिये सुघडजन सद्गुरु० ॥ ६ ॥ देवी चामुंडा बिम्ब बनावे । वेलु दुग्धसें धरीये सुघडजन । सद्गुरु० ॥ ७ ॥ हर्षसें पुछे संघ प्रभुसें । बिंब कहां शुभ धरिये सुघडजन । सद्गुरु० ॥८॥ये सुन सद्गुरु बोले वाणी । बिंब साचलदे करिये सुघडजन । सद्गुरु० ॥९॥ संघ कहे हम तुरत बतावो। ये इच्छा उर धरीये सुघडजन । सद्गुरु०॥ १०॥ देर आभिहे सात दिवसकी । जलदि ना श्रावक करिये सुघडजन। सद्गुरु० ॥ ११ ॥ करजोरे पुनःशीशनमावै । सब श्रावक पग परिये सुघडजन । सद्गुरु०॥१२॥ दरस करावो वीर प्रभुको । हय-गय-रथसुं उवरिये सुघडजन । सद्गुरु० ॥ १३॥ सद्गुरु संघ सकलसब मिलकर । वरघोडे लेउ विचरिये सुघडजन । सद्गुरु० ॥ १४ ॥ शुभ सम मुहूरत प्रभुकुं काढे । नाटक-नृत्य विस्तरिये सुघडजन । सदुगुरु०॥ १५॥ कोटि सोनैया दान जो देके । निछरावलमाण करिये सुघडजन । सद्गुरु० ॥१६॥ मनसुध भावे भावत याविध । बाह्य मंडपमें धरिये। सुघडजन । सद्गुरु० ॥ १७ ॥ करण कहे शुभ

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