Book Title: Bruhadaloyana
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 6
________________ (B) पुजल रूप है । जीव रूप है ज्ञान || दो मिल कर ब दुरूप है । विबड्यां पद निरवाण ॥ २ ॥ जीव कर म जिन्न जिन्न करो । मनुष्य जनमंकूं पाय ॥ ज्ञानात म वैराग्यसें । धीरज ध्यान जगाय ॥ ३ ॥ इव्यथकी जीव एक है । क्षेत्र असंख्य प्रमान ॥ कालयकी सर्व दार | जावें दर्शन ज्ञान ॥ ४ ॥ गर्जित पुजल पिंम में | अलख मूरति देव || फिरे सहज नवचक्रमें । यह अनादिकी देव ॥ ५ ॥ फूल तर घी दूधमें । ति लमें तैल बिपाय || यूं चेतन जड करमसंग । बंध्यो ममत दुःख पाय ॥ ६ ॥ जो जो पुजलकी दिशा । ते निज माने हंस ॥ यादी नरम विजावतें । बढे क रमको बंस ॥ ७ ॥ रतन बंध्यो गठडी विषे । सूर्य बि प्यो घनमांहि ॥ सिंह पिंजरामें दियो । जोर चले क बु नांहि ॥ ८ ॥ ज्युं बंदर मदिरा पीयां । वितू रुंकित गात ॥ नूत लग्यो कौतुक करे । त्युं कर्मोंको उत्पात ॥ ए ॥ कर्म संग जीव मूढ है | पावे नाना रूप ॥ कर्मरूप मलके टले । चेतन सिद्ध सरूप ॥ १० ॥ शु 5 चेतन उज्ज्वल दरव । रह्यो कर्म मल बाय ॥ त प संयमसें धोवतां । ज्ञान ज्योति बढ़ जाय ॥ ११ ॥ ज्ञान की जाने सकल । दर्शन श्रद्धा रूप ॥ चारित्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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