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सके क्युं खरचियें । दाम बिराना जान ॥ ६ ॥ जीव हिंसा करतां थकां । लागे मिष्ट अज्ञान ।। ज्ञानी इम जाने सही। विष मिलियो पकवान ॥ ७ ॥काम जो ग प्यारा लगे । फल किंपाक समान ॥ मीती खाज खुजावतां । पी मुखकी खान ॥ ७ ॥ जप तप सं जम दोहिलो। औषध कडवी जान ॥ सुख कारन पी घनो । निश्चय पद निरवान ॥ ए॥ मानधणी जल बिंऽवो । सुख विषयनको चाव ॥ नव सागर मुख जल जस्यो। यह संसार स्वनाव ॥ १० ॥ चढ उत्तंग जहांसें पतन । शिखर नहीं वो कूप ॥ जिस सुख अंदर मुख वसे । सो सुखनी उख रूप ॥ ११ ॥ जब लग जिसके पुण्यका । पहोचे नही करार ॥ तब लग उसकों माफ है। अवगुन करे हजार ॥ १२ ॥ पुण्य खीन जब होत है । उदय होत है पाप ॥ दा जे बनकी लाकरी। प्रजले आपो आप ॥ १३ ॥ पा प बिपाया नां लिपे । बिपे तो महोटा नाग ॥ दाबी उबी नां रहे । रु पलेटी आग ॥ १४ ॥ बढ़ बीती थोडी रही । अब तो सुरत संचार ॥ परनव निश्चय चालनो। वृथा जन्म मत हार ॥ १५ ॥ चार कोश ग्रामांतरें । खरची बांधे लार ॥ पस्नव निश्चय जाव
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