Book Title: Bruhadaloyana Author(s): Shravak Bhimsinh Manek Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 8
________________ सुख दुःख दोनुं वसत है। ज्ञानीके घटमांहि ॥ गि रिसर दीखे मुकरमें । नार बोजवो नांहि ॥२३॥ जो जो पुजल फरसना । निश्चे फरसे सोय ॥ ममता स मता नावसे । करमबंध खय होय ॥॥ बांध्या सो ही जोगवे । कर्मशुनाशुन नाव ॥ फल निर्जरा होत है। यह समाधि चित्त चाव ॥ २५ ॥ बांध्या बिननु गते नही। बिन चुंगत्यां न बुडाय ॥ यापही करता जोगता। आपही दूर कराय ॥ २६ ॥ पथ कुपथ घ ट वध करी । रोग हानि ६ थाय ॥ { पुण्य पाप किरिया करी। सुख सुख जगमें पाय ॥ २७ ॥ सुख दीयां सुख होत है । उख दीया सुख होय ॥ आप हणे नही अवरकू। तो अपने हणे न कोय ॥२७॥ झान गरीबी गुरु बचन । नरम वचन निर्दोष ॥ इन कुं कबीन बांमीयें। श्रमा शील संतोष ॥ २ए ॥ स त मत बोडो हो नरा । लक्ष्मी चौगुनी होय ॥ सुख मुख रेखा कर्मकी। टाली टले न कोय ॥ ३०॥ गो धन गजधन रत्नधन । कंचन खान सुखान॥जब था वे संतोष धन । सब धन धूल समान ॥ ३१ ॥ शील रतन महोटो रतन । सब रतनांकी खान ॥ तीन लो ककी संपदा । रही शीलमें धान ॥ ३२ ॥ शालें सर्प Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28