________________ 26) जगवंत गुरु देव माहाराजजी आपकी आग्या है स म्यक् ज्ञान दर्शन सम्यक् चारित्र तप संयम संवर नि ऊँरा मुक्तिमार्ग यथाशक्तियें गुरु उपयोग सहित था राधनें पालने फरसने सेवनेकी श्राग्या है वारंवार शु न योग संबंधि सबाय ध्यानादिक अनिग्रह नियम व्रत पच्चरकाणादि करणे करावणेकी समिति गुप्ति प्रमु ख सर्व प्रकारे वाग्या है // // दोहा // // निश्चल चित्त शुभ मुख पढत / तीन योग थिर थाय // उर्लन दीसे कायरा / हलु कर्मी चित्त नाय // 1 // अदर पद हीणो अधिक / नूल चूक कही होय // अरिहंत सि आतम साखसे / मिहामि 5 क्कड मोय // 2 // नूल चूक मिजामि उक्कडं // इति श्रावक श्रीलालाजी रणजितसिंघजी कृत बृहदालो यणा संपूर्णा // Kamalakikasikasikasikaraoke // इति बृहदालोयणा समाप्त // श्र० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org