Book Title: Bruhadaloyana
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 27
________________ (१५) शासन पति वर्षमानजी। तुम लग मैरी दोड ॥ जैसे समुह जहाज विण । सूजत और न ठगेर ॥ २ ॥ नवन्रमण संसार कु:ख । ताका वार न पार ॥ निर्लो नी सतगुरु बिना। कवण उतारे पार ॥ ३०॥ नव सागर संसारमे। दीपा श्री जिनराज ॥ उद्यम करी पोहोचे तीरें। बेठी धरम जहाज ॥ ३१ ॥ पतित उ पारन नाथजी। अपनो बिरुद विचार ॥ नूल चूक सब माहरी। खमीयें वारं वार ॥ ३२ ॥ माफ करो सब माहरा । आज तलकना दोष ॥ दीन दयाल दी यो मुजे। श्रदा शील संतोष ॥ ३३ ॥ देव अरिहंत गुरु निग्रंथ । संवर निर्जरा धर्म ॥ केवली नाषित शा सतर । येही जैन मत मर्म ॥ ३४ ॥ इस अपार सं सारमें। शरन नहीं अरु कोय ॥ यातें तुम पद नग तही। नक्त सहायी होय ॥ ३५ ॥ बूटुं पिबला पाप थी। नवा न बंधु कोय ॥ श्रीगुरु देव प्रसादसें । स फल मनोरथ मोय ॥ ३६॥ आरंन परिग्रह त्यजी करी। समकित व्रत बाराध ॥ अंत अवसर आलोय कें। अनशन चित्त समाध ॥ ३७ ॥ तीन मनोरथ ए कह्या । जे ध्यावे नित्य मन्न ॥ शक्ति सार वरते स ही। पामे शिव सुख धन्न ॥ ३० ॥ श्री पंचपरमेष्टी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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