Book Title: Bruhadaloyana
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ (ए) यो | करियें धर्म बिचार ॥ १६ ॥ रज विरज नंची गई | नरमाइके पान || पर ठोकर खात है । करडा इके तान ॥ १७ ॥ अवगुन वर धरियें नहीं । जो हु ये विरष बबूल | गुन लीजें काजू कहै । नहीं बायामें सूल ॥ १८ ॥ जैसी जापें वस्तु है । वैसीदें दिखला य ॥ वाका बुरा न मानीयें। वो लेने कहांसें जाय ॥ ॥ १५ ॥ गुरु कारीगर सारिखा । टांची वचन विचा र ॥ परसें प्रतिमा करे । पूजा नहे अपार ॥ २० ॥ संतनकी सेवा कियां । प्रभु रीजत है याप ॥ जाका बाल खिलाइयें । ताका रीजत बाप ॥ २१ ॥ नवसा गर संसारमें। दीपा श्री जिनराज ॥ उद्यम करी पहों चे तिरें | बैठी धर्म जहाज ॥ २२ ॥ निज धातमकूं दमन कर । पर यातमकूं चीन ॥ परमातमको नज न कर । सोई मत परवीन ॥ २३ ॥ समजु शंके पा पसें । ण समजु हरषंत ॥ वे सूखां वे चीकणां । इ विध कर्म बधं ॥ २४ ॥ समज सार संसार में । समजु टाले दोष ॥ समज समज करी जीवहीं। ग या अनंता मोह ॥ २५ ॥ उपशम विषय कषायनो | संबर तीनुं योग ॥ किरिया जतन विवेकसें । मिटें कुकर्म दुखरोग ॥ २६ ॥ रोग मिटे समता वधे । 1 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28