Book Title: Bolti Tasvire
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 131
________________ शित कर सके । लगता है इस जीवन में तो नहीं, कभी अन्य जीवन में प्रकाशित हो सकेगी। निरालाजी ने उनके मित्र को संकेत किया कि सामने खूटी पर जो उनका कुर्ता टँगा हुआ था, वे उसे इधर ले आवें । उन्होंने कुर्ते में से सारे रुपये निकालकर चित्रजी के हाथ थमाते हुए कहा-निराश न बनिये । और अपने इस जीवन में ही पुस्तक छपवाकर आह्लाद का अनुभव कोजिए। चित्रजी ने कहा- मुझे आपसे रुपया नहीं लेना किन्तु निराला ने कहा- भाई, क्यों घबराते हो? मैंने अपनी इच्छा से दिये हैं। चित्रजी ने उन रुपयों से अपना काव्य प्रकाशित करवाया। उसके पश्चात् उनकी अनेक पुस्तके प्रकाशित हुई और निरालाजी की प्रेरणा से शासन की ओर से उन्हें प्रति माह सौ रुपया आर्थिक सहायता भी दी जाने लगी। जब भी चित्रजी को निरालाजी का स्मरण होता उनकी आँखों से सहृदयता के आँसू टपक पड़ते। और उनकी हत्तन्त्री झनझना उठतो कि वस्तुतः निरालाजी निराला ही थे। ११८ बोलती तसवीरें Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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