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अहंकार का नाश
उज्जयिनी के राजा भोज महान पराक्रमी थे । विद्या के प्रति उनका स्वाभाविक अनुराग था। सैकड़ों विद्वान् उनकी राज सभा में आकर अपने आपको गौरवान्वित अनुभव करते थे । सैकड़ों कविगण नित नई कविताएँ बनाकर उनकी राजसभा में उपस्थित होते और यथेष्ठ पुरस्कार प्राप्त कर प्रसन्नता से विदा होते थे । एक बार मन्त्री ने राजा भोज को एक सूची बतायी जिसमें राजा भोज ने अपने जीवन में जितना दान दिया था, उसका विवरण था । सूची को पढ़कर राजा भोज के अन्तर्मानस में यह विचार लहराने लगा कि आज तक अन्य राजागण इतना दान न दे सके, उतना दान मैंने अकेले दिया है । | वस्तुतः अब मैं अपने आपको धन्य अनुभव करने लगा हूँ ।
राजा भोज के चेहरे को देखकर वृद्ध मन्त्री ने समझ लिया कि राजा भोज को अहंकार के काले नाग ने उस
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