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आगे नहीं बढ़ सकती, जब तक मेरी पुत्रो नहीं मिल जाती। पति ने बहुत समझाया कि उसके कारण हमारे को ही रास्ते में रहना पड़ेगा। पर तिरिया हठ के सामने उसे झुकना पड़ा। वह पुनः उसे लेने के लिए चला। वहाँ जाकर उसने देखा-एक काला सर्प उस शिशु पर फन फैलाये बैठा है। पिता की हिम्मत नहीं हुई कि उस शिशु को उठा सके। पर देखते-देखते सर्प वहाँ से लुप्त हो गया। पिता ने उसे उठाकर पत्नी को सौंप दिया। जेठ की उस दुपहरो में वह शिशु नहीं बच सकता था, किन्तु पुण्य-बल के कारण ही उसको रक्षा हुई और वहीं कन्या नरजहाँ के नाम से भारत की साम्राज्ञी बनी।
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बोलती तसवीरें
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