Book Title: Bhuvaneshvari Mahastotram
Author(s): Jinvijay, Gopalnarayan Bahura
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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( ६ )
पहले यह विश्व प्रजापति ही था । उसकी बाकू ही उसकी द्वितीया थी । प्रजापति ने सोचा मैं इस वाक् का प्रसार करूं । अर्थात् ब्रह्म अथवा शिव ने एक से अनेक होने की इच्छा की और उसकी शक्ति जो उसी में विद्यमान थी, वाक् रूप मैं आविर्भूत हुई। यह इच्छा और शब्दब्रह्म का संयोग ही जगत् की जननी शक्तिरूपा अम्बिका की महायोनि में पृथक् रूप में पुंजीभूत दृश्यजगत् की सृष्टि का सबल कारण है । यही महाशक्ति पुनः उस चित्रह्म में प्रविष्ट हो जाती है, लीन हो जाती है । यही विश्व का संहार है, प्रतय है। सृष्टि और संहार के मध्यवर्ती काल मॅ शक्ति का विश्वात्मक रूप प्रसुत होता है। जड़ और चेतन उसके ऐहिक रूप है। वैदिक परिभाषा में इन्हें रयि और प्राण कहते हैं । उसी बाकू और आत्मा के संयोग से वह सभी वस्तुओं, वेदों, यों. छन्दों, प्रजाओं और पशुओं का सृजन करता है ।'
वाकू का प्रादुर्भाव जीवरूप से किसी एक ही महापुरुष में नहीं हुआ अपितु वह्न तो सभी मनुष्यों, प्राणियों और स्थूल वस्तुओं में श्राविर्भूत हुई और होती रहती है । सभी प्राणी इस बाकू से ब्रह्मसायुज्य प्राप्त कर सकते हैं। बाकू का प्रादुर्भाव प्रत्येक मनुष्य में होता है अत एव वह उसके स्वरूप को जान सकता है, उसका अनुभव कर सकता हैं । वाक् का ब्रह्म के साथ ऐक्यभाव: है, अतः वागनुभूति द्वारा ही ब्रह्मानुभूति भी सुलभ है ।
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यह विश्व विश्वम्भर की इच्छा अथवा काम का परिणाम है। भौतिक स्तर पर काम का अन्य अर्थों के साथ साथ यौन संसर्गेच्छा अर्थ भी है। मूलरूप में यह परसपुरुष की आदिम सिखक्षा ( सृजनेच्छा ) है । प्राणिमात्र में व्याप्त यह भौतिकसिक्षा उसी आदिम इच्छा का परिणाम है । और यह ईश्वरीय काम ही जगत् का मूल कारण है । वाक् काम की पुत्री है। काम ही सब देवताओं में प्रमुख है, शक्तिशाली है। काम की पुत्री का नाम गौ है । जिसको ऋषियों ने वाग्विराट्र कहा है।
२.
स तया वाचा तेन श्रात्मना इदं सर्वमसृनत |
यत् इदं किञ्च ऋचो यजूंषि सामानि छन्दांसि यज्ञं प्रजाः पशुम् । बृहदारण्यकोपनिषत् ।
क. अथर्ववेद ३१ ।
ख. शतपथ ब्राह्मण ६|३|११८, ६३१२
ग. कठोपनिषद् १५\११, २०११
घ. चतुर्मुखी जगद्योनिः प्रकृतिगः प्रकीर्तिता । वायु० पु० २३|१४
३. चाग व विराट् । शतपथ ब्रा० ३।५।११३४ ॥