Book Title: Bharatesh Vaibhav
Author(s): Ratnakar Varni
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 10
________________ सारांशतः सर्व प्रकारसे यह काम्म सुन्दर मुदुमधुरवाक्योंकी रखनासे अपसे इतितक चित्ताकर्षक, इहपरमें मुखोत्पादक नीतियोंसे मुक्त, मानवीय हृदयमें महागुणोंका बीजारोपण करनेवाला, कथा-प्रेमियोंको आनन्द देनेवाला, अध्यात्मरस पिलानेवाला, अंगारप्रेमियोंको शृंगार रसको देनेवाला, तस्वशानियोंको तत्वशान करानेवाला एवं विद्वानोंको आदरणीय है। एक बार नहीं अनेकबार मनन करने योग्य है। पोली इस काम्यकी रचनामें कविने अत्यन्त सरल मौलीको पसन्द किया है। साधारणसे साधारण रसिकोंको इस काव्यका रस मिले इस उद्देश्यसे कविने अत्यन्त सरल पतिसे स्वाभाविक चित्रोंको चित्रित किया है। काश्य मधुर व श्रष्य रहे इसके लिये कविने बहुत प्रयत्न किया है । अतएव काव्य शिक्षाप्रद नैतिक बल दायक एवं आत्मकल्पागके लिये साधक हो गया है। रचनाचातुर्य-इस काव्यको बांधनेसे कविके रबमाचातुर्यका बोध होता है। पद्यपि भोगविजयमें कथाभोग तो बहुत ही कम है यही कारण है कि कविने भरत चक्रवर्तीके तीन दिनकी दिनचर्याको १९ परिच्छेदोंमें चित्रित किया है। याही कौशल है। काम्पको एक नाटकके हंगसे प्रारम्भ किया है। आस्वानसषिसे प्रारम्भकर भरत चक्रवर्तीको राण दरवारमें बैठा दिया है। वहाँपर दिविजकलाधर नामक मास्थान कविसे भरतकी स्तुति कराई है जिससे पाठकोंको भरतेशक गणोंका परिचय हो, दिविजकलापरम भी उस कार्यको पूर्णकर अपने विवेकको सिद्ध किया है। तदनन्तर चक्रवर्तीके धार्मिक कृत्योंसे परिचय करानेके लिये मुनिभूक्तिसंधिका वर्णन किया है। उसके बाद शय्यागृहसंधि पर्यंत भरतचक्रवर्तीका रानियों के साथ एक दिनके सरस विहारका वर्णन होनेपर मी पाठकोंके पित्तको भाषित करनेवाला है। ___ भरलेशका सर्वागीण वर्णन करना इस काव्यका मुख्य ध्येय है। आदिचक्रवर्ती भरतका परिचय पंचमफालके वह भी १६ वीं शताब्दीके एक कविको अपेक्षा भरतके साथ रात्रिदिन रहनेवाली उसकी प्रिय रानीको अधिक रहना स्वाभाविक है। इसलिए कविने उस विषयपर अनधिकार चेष्टा न कर भरतेषकी प्रियरानी समाजीसे ही उस कामको कराया है। उसमें मी या तारीफ ? बह अपने हवयको बास दुसरोंसे कहती है क्या? नहीं, वह अपने महलमें बैठकर अपने प्रिय तोते से पतिको प्रशंसा कर रही है। पड़ोसमें रहनेवालो अममाजी सुमनामी रानियोंने विपकर सुन लिया, फिर इसे इस काव्याने रूममें रखला को ।

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