________________
५८
भक्तामर-कथा।
हरि राजाकी कथा । . __ जो भव्य पवित्र भावोंसे इस श्लोकके मंत्रकी आराधना करते हैं,
उन्हें मनचाही वस्तुएँ प्राप्त होती हैं । इसकी कथा इस प्रकार है:____ महासिंधु गोदावरीके किनारे पर बानापुर नामका एक बहुत सुन्दर नगर है। वह अपनी बढ़ी हुई सम्पत्तिसे स्वर्गको भी नीचा दिखाता है। उसके राजाका नाम हरि है । वे रूप-गुण-वैभवमें इन्द्र-सदृश हैं। उन्हें सब सुख-सामग्री प्राप्त होने पर भी इस बातका अत्यन्त दुःख है कि उनके पुत्र नहीं है। पुत्रकी चिन्ताके दुःखने उनके सब सुखोंको किरकिरा कर दिया है। __इस चिन्ताके मारे राजा सदा उदास और हताश रहने लगे। उनका किसी काममें चित्त नहीं लगता था। उन्हें इस तरह खेदित देख कर एक दिन राज-पुरोहितने उनसे प्रार्थना की कि राजराजेश्वर ! आप एक साधारण बातके लिए इतने चिन्तित क्यों हैं ? मैं आपको एक उपाय बतलाता हूँ, उसे आप कीजिए । उससे आपका मनोरथ अवश्य पूरा होगा । वह उपाय यह है, कि आप प्रतिदिन प्रातःकाल, स्नान करके दर्भासन पर बैठ मन-वचन-कायकी पवित्रताके साथ शंकरकी आराधना किया करें । इस प्रकार कुछ दिनों तक करनेसे शंकर प्रसन्न होकर आपको मनचाहा वर प्रदान करेंगे । उससे आपको अवश्य पुत्र-लाभ होगा।
पुरोहितके कहे अनुसार राजाने शंकरकी आराधना शुरू की और बहुत दिनों तक की भी; परन्तु उससे न तो शंकर प्रसन्न हुए और न पुत्र ही हुआ । कुदेवोंकी पनासे ही यदि मनचाहा फल मिल जाया करे, तो फिर सुदेवोंको कौन पूछेगा ? और कौन उनकी पूजा-भक्ति