Book Title: Bhaktamar Katha
Author(s): Udaylal Kasliwal
Publisher: Jain Sahitya Prasarak karyalay

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Page 138
________________ ऋद्धि, मंत्र और साधनविधि । १६— ऋद्धि-ॐ ह्रीं अर्ह णमो चउदसपुव्वीणं । मंत्र — ॐ नमः सुमंगला सुसीमा नाम देवी सर्वसमीहितार्थ वज्रशृंखलां कुरु कुरु स्वाहा । विधि - यंत्र पास रखने और १०८ बार मंत्र प्रतिपक्षीकी हार होती है, शत्रुका भय नहीं रहता । १००० जाप हरे रंगकी माला द्वारा करनी चाहिए । धूप कुन्दरुकी हो । १७ १२९: जपकर राजदरबार में जानेसे विधान - ९ दिनतक प्रतिदिन ऋद्धि - ॐ ह्रीं अर्ह णमो अट्ठांग महाणिमित्तकुशलाणं । मंत्र — ॐ नमो णमिऊण अट्ठे मट्ठे क्षुद्रविघट्टे क्षुद्रपीड़ा जठरपीड़ा भंजय भंजय सर्वपीड़ा सर्वरोगनिवारणं कुरु कुरु स्वाहा । विधि-यंत्र पास रखने और अछूता पानी मंत्रद्वारा २१ बार मंत्रकर पिलानेसे पेटकी असाध्य पीड़ा तथा वायुशूल, गोला आदि सभी रोग मिटते हैं । विधान - ७ दिनतक प्रतिदिन १००० जाप सफेद माला द्वारा करनी चाहिए । धूप चन्दन की हो । १८ ऋद्धि - अर्हम विययद्विपत्ताणं । मंत्र — ॐ नमो भगवते जयविजय मोहय मोहय स्तंभय स्तंभय स्वाहा । विधि— यंत्र पास रखने और १०८ बार मंत्र जपने से शत्रु अथवा शत्रुक सेनाका स्तंभन होता है। विधान - ७ दिनतक प्रतिदिन १००० जाप लाल मालासे करना चाहिए । धूप दशांग हो और एक बार भोजन करना चाहिए । १९ ऋद्धि - ॐ ह्रीं अर्ह णमो विज्जाहराणं । मंत्र-ॐ हां हीं हूं हः यक्ष न्हीं वषट् नमः स्वाहा । ऋद्धि - ॐ ह्रीं अर्ह णमो चारणाणं । भ० ९ विधि - यंत्र पास रखनेसे और मंत्रको १०८ बार जपनेसे अपने पर प्रयोग किये हुए दूसरेके मंत्र, विद्या, टोटका, जादू, मूठ आदिका असर नहीं होता; उच्चानका भय नहीं रहता । २०

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